Monday, October 30, 2017

Are Beliefs wrong?

Beliefs, even the false beliefs, may not be wrong after all.

Fantasies and some beliefs may seem like nonsense but at least, they stimulate the brain cells. When we look at the things as they are, our brain remains sort of inactive. It simply perceives it as it is, but when we start to imagine or fantasize around those same things, our brain suddenly becomes stimulated and very active.
For example, take the ancient Hindu Scriptural analogy of 'Rope vs. Snake'. We find a piece of black thick twisted rope lying on the floor. If we know that it’s a rope, we cross it or walk by it without paying any further attention to it. But if we, mistakenly, perceive it as a snake, our whole attitude towards it changes immediately. A current of fear runs thru our body and the brain starts to work fast. We may stop and start looking at it carefully to see what it really is, or immediately start running in the opposite direction.

The ‘knowledge’, that it is a piece of rope, makes us at ease, while the ‘belief’ that it’s a snake stimulates us and makes us find an alternative route to escape.

Should we believe in miracles? Do they really happen?

Everyone perceives it differently, in their own way.

A Brahm Gyani (Enlightened one) knows thru his knowledge that everything happens just the way it is supposed to happen.

“Rai vadhay na til ghatay, jo likheyaa Kartaar” (Gurubani)

(Not even equal to the size of a mustard seed can be added or taken out from what is written by the creator)

And:
“Tulasi bharosay Raam kay, nirbhaya ho ke soye
  Anhoni to hoye nahin – honi hoye so hoye”    (Sant Tulasi das)

(Impossible or what is not supposed to happen, will not happen.
 What is supposed to happen – let it happen.)

So, the Gyani stays calm, quiet and at peace in every situation. He also knows that nothing is permanent; everything good or bad shall eventually pass. Therefore, he stays undisturbed.

For the rest of us, believing in miracles, and in the power of prayer gives us hope and relieves some stress in adverse situations.

 ‘Belief’ can stimulate and direct our mind to a different direction, to find an alternative way to relieve stress and find peace thru prayer and devotion. Thru Satsang, Seva and Sumiran.

Every new scientific invention was also just a fantasy or an imagination at one point. Every scientific theory started with a belief - that, after doing some intensive research, turned into knowledge of reality.

Similarly, believing in something or in some ideology, can eventually help us find the ‘Reality’. As long as we keep moving forward and try to find the next step - the ‘Realization’ - beliefs are a good way to start.

                                     'Rajan Sachdeva'



Thursday, October 26, 2017

दिखता है जो आँखों से - Dikhta hai jo Aankhon say

        दिखता  है  जो आँखों  से  हमेशा सच नहीं होता

       कहीं धोखे में आँखें हैं  - कहीं आँखों में धोखा है 


Dikhta hai jo aankhon say - hamesha such nahin hota 


Kahin dhokhay me aankheh hain-kahin aankhon me dhokha hai 

Thursday, October 19, 2017

Wish for a Happy Diwali (Diyaa jalay)

Wish for Diwali ..................  (Scroll down for Roman Script)

चाहे जिधर भी रुख हो हवा का दिया जले 
जब तक चला न जाए अँधेरा दिया जले

मिलता रहे जहाँ को उजाला - दिया जले 
दिल की ये आरज़ू है हमेशा दिया जले

घर हो किसी अमीर का या हो ग़रीब का 
हर घर में आज शाम खुशी का दिया जले

दीपावली की शाम कुछ ऐसी हो रौशनी 
मिट जाये हर बुराई का साया - दिया जले

रौशनी हो प्यार की हर एक बज्म में 
शम्मा जले चिराग़ जले या दिया जले





Chaahe jidhar bhi rukh ho hawaa ka- diya jalay

 Jab tak chalaa na jaaye andhera - diya jalay


Miltaa rahe jahan ko ujaala - diya jale

Dil ki ye aarzoo hai hamesha diya jalay


Ghar ho kisi amir ka ya ho gharib ka

Har ghar me aaj shaam khushi ka diya jalay


Dipaavali ki shaam kuchh aisi ho raushni

Mit jaaye har buraai ka saaya - diya jalay


Raushni ho pyaar  ki har ek  bazm me

Shamma jalay, Chiragh jalay ya diya jalay


        (Writer: Unknown)





Sunday, October 8, 2017

पंद्रह सैनिक और चाय की दुकान

              " जम्मू और काश्मीर के कूपवाड़ा क्षेत्र के एक सैनिक द्वारा सुनाई गयी एक सच्ची कहानी "

एक मेजर के नेतृत्व में पंद्रह सैनिकों का एक समूह हिमालय में अपनी निर्धारित पोस्ट पर ड्यूटी देने के लिए जा रहा था , जहां उन्हें अगले तीन  महीनों के लिए रहना था ।
एक तो वैसे ही बहुत सर्दी थी और फिर ऊपर से गिरती हुई बर्फ के कारण हिमालय की दुर्गम चढ़ाई और भी मुश्किल हो गई थी।
"काश ! इस समय कहीं गर्म गर्म चाय मिल जाती"  मेजर ने सैनिकों से कहा, हालाँकि उसे मालूम था कि बर्फ से ढंके उन सुनसान पहाड़ी रास्तों में यह इच्छा व्यर्थ थी।
उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी। क़रीब एक घंटे के बाद उन्हें कुछ दूरी पर सड़क के किनारे लकड़ी की बनी हुई एक छोटी सी चाय की दुकान दिखाई दी। लेकिन जल्द ही उनकी खुशी निराशा में बदल गई जब उन्हों ने देखा कि दुकान बंद थी और उस पर ताला लगा हुआ था ।
"आज दुर्भाग्य से यहां भी चाय नहीं मिल सकेगी " मेजर ने कहा। 
शाम हो चुकी थी और वे सब थके हुए थे। इसलिए उन्होंने सिपाहियों से कहा कि वह सफ़र जारी रखने से पहले कुछ देर आराम कर लें  - क्योंकि वे पिछले कई घंटों से चल रहे थे।
"सर, यह चाय की दुकान है और यहां हम खुद ही चाय बना सकते हैं ... लेकिन हमें ताला तोड़ना होगा" एक सैनिक ने सुझाव दिया
मेजर इस अनैतिक सुझाव को स्वीकार करने में संकोच कर रहा था, लेकिन थके हुए सिपाहियों को इस सर्दी में गर्म चाय से कितनी राहत मिलेगी - ऐसा सोच कर उसने दुकान का ताला तोड़ने की अनुमति दे दी ।
भाग्यवश, दुकान के अंदर जहाँ चाय बनाने के लिए सब आवश्यक सामान मौजूद था, वहीं एक शेल्फ पर बिस्कुट के बहुत से पैकेट भी रखे हुए थे।
गर्म चाय और बिस्कुट मिलने से सैनिकों में नई स्फूर्ति का संचार हुआ और जल्दी ही सब बाकी यात्रा के लिए तैयार हो गए ।
मेजर साहिब के मन में विचार आया .. 'हम अनुशासित सैनिक हैं - कोई चोरों का ग्रुप नहीं। हमने इस दुकान का ताला तोड़ा और मालिक की ग़ैर हाज़री में - उसकी अनुमति के बिना चाय पी और बिस्कुट खाए।
ऐसा सोच कर - चाय और बिस्कुट के लिए भुगतान करने और लॉक की मरम्मत करवाने की लागत का विचार करते हुए - मेजर साहिब ने अपनी जेब से दो हजार रूपये निकाले, और काउंटर पर एक बर्तन के नीचे इस तरह से दबा कर रख दिए कि जब मालिक आये तो उन्हें देख सके। ऐसा करके उनके मन को उस ग्लानि से कुछ हद तक राहत मिली जिसे वो अनैतिक एवं गैर कानूनी ढंग से दुकान में प्रवेश करने के कारण अनुभव कर रहे थे। 
जब सैनिकों ने बर्तन इत्यादि साफ करके इस्तेमॉल की गई हर चीज़ को ठीक ढंग से यथा स्थान रख दिया तो मेजर साहिब ने दुकान बंद करने के लिए शटर नीचे खींचा और सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश दिया।

तीन महीने बीत गए। 
वह भाग्यशाली थे कि उन पर हुए कई हमलों के बावजूद भी सभी सदस्य जीवित और सुरक्षित थे। 
और अब, उनकी जगह लेने के लिए दूसरी टीम वहां पहुँच चुकी थी। 
वापिस जाते हुए मेजर साहिब ने रास्ते में उसी चाय की दुकान पर दुबारा रुकने का आदेश दिया। इस बार दुकान खुली थी और मालिक भी दुकान में मौजूद था। बड़ी उमर का ग़रीब और कमजोर सा दिखने वाला मालिक पंद्रह ग्राहकों को एकसाथ देख कर बहुत प्रसन्न हुआ और हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए उन्हें बैठने का आग्रह किया। फिर जल्दी से स्टोव पर चाय के लिए पानी रखा और कुछ प्लेटों में बिस्कुट रख कर धीरे धीरे बड़े प्रेम से सबके सामने रखने लगा।  
उस बूढ़े आदमी की स्फूर्ति और आँखों में झलकते हुए प्रेम को देख कर सभी आश्चर्य चकित हो रहे थे। 
चाय की चुस्कियों के दौरान, मेजर साहिब ने उस बूढ़े व्यक्ति से अपने जीवन के कुछ अनुभव सुनाने के लिए कहा - और पूछा कि इस सुनसान जगह पर छोटे से गाँव में इस छोटी सी दुकान पर चाय की बिक्री से क्या वह अपने परिवार के लिए पर्याप्त पैसा कमाने में 
सक्षम था?
बहुत नरम लेकिन दृढ़ और विश्वासपूर्ण स्वर में उसने जवाब दिया :
"भगवान बहुत विशाल - और बहुत ही दयालु है। उन्होंने हमेशा मेरी और मेरे परिवार की देखभाल की है" 
उसकी आवाज में परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास और आस्था साफ झलकती थी। 
"अरे बाबा, अगर भगवान बहुत दयालु है, तो उस ने आपको ऐसी गरीबी की हालत में क्यों रखा हुआ है ?" 
 एक सिपाही ने व्यंग्य करते हुए पूछा ।
बूढ़े आदमी ने उसे प्रेम से देखते हुए कहा :
"साहिब! मैं आपको एक हाल ही की घटना सुनाता हूं कि भगवान ने हमारी देखभाल कैसे की। 
 अभी तीन महीने पहले, मैं एक बहुत कठिन दौर से गुजर रहा था। मेरे एकमात्र बेटे को आतंकवादियों ने बुरी तरह से मार पीट कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था। उसकी हालत नाज़ुक थी और उसे अस्पताल ले जाया जाना बहुत ज़रूरी था।  लेकिन मेरे पास कुछ भी नहीं था। एक तो अस्पताल और दवाओं के लिए पैसों की ज़रूरत थी - और ऊपर से मुझे उसकी देखभाल करने के लिए अपनी दुकान भी बंद करनी पड़ी। "
आँखों में आभार के छलकते हुए आँसुओं के साथ - भरे हुए गले से बूढ़े आदमी ने कहा:
"उस शाम, मैंने मदद के लिए भगवान से प्रार्थना की ... और भगवान स्वयं उस रात मेरी दुकान में चले आये थे "
आँख में आए आंसू पोंछते हुए उसने अपनी बात को जारी रखा :
"दुकान में रखे हुए पिछले कुछ दिनों की बिक्री के पैसे निकालने  के लिए जब मैं सुबह दुकान खोलने लगा तो मैंने देखा कि ताला टूटा हुआ था । ये देख कर मुझे दुःख हुआ और ग़ुस्सा भी आया - मैंने सोचा कि अन्य चीजों के साथ, दुकान में जो पैसा रखा था, वो भी चोरी हो गया होगा। अब मैं बेटे का इलाज कैसे करवाऊंगा ?
लेकिन जब मैं अंदर गया तो मैंने देखा कि भगवान  काउंटर पर चीनी के बर्तन के नीचे मेरे लिए दो हजार रुपये रख गए थे । 
साहिब ! मैं आपको बता नहीं सकता कि उस दिन वो रुपये मेरे लिए कितनी कीमत रखते थे । उन पैसों से मैं अपने बेटे को अस्पताल 
ले जा सका - उसके लिए दवाइयां खरीद सका । मेरा बेटा अब बिलकुल ठीक है ... देखिये भगवान ने हमारा कितना ख्याल रखा और 
कैसे हमारी मदद की।   
भगवान है साहिब ! और बहुत दयालु है "
उसकी आंखों में आस्था और विश्वास का प्रकाश चमक रहा था। 
यकायक पंद्रह जोड़े आँखें मेजर साहिब की आँखों से मिलने के लिए उनकी तरफ  उठ गयीं। 
मेजर साहिब ने आँख से ही सबको चुप रहने का आदेश दिया और कुर्सी से उठ कर उस बूढ़े आदमी को गले लगा लिया और कहा, 
"हां बाबा, आप सच कहते हो कि भगवान बहुत दयालु है।"
"और आपकी चाय भी बहुत बढ़िया थी" ये कहते हुए मेजर साहिब ने बिल का भुगतान करने के लिए जेब से पैसे निकाले लेकिन उनकी आँखों के कोनों में आयी हुईं आँसुओं की दो बूँदें उन पंद्रह जोड़े आँखों से छुपी न रह सकीं। ये एक ऐसा भावनापूर्ण द्रिश्य था जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। 

(यह कहानी जम्मू और कश्मीर के कूपवाड़ा क्षेत्र के एक सैनिक द्वारा सुनाई गयी एक सच्ची घटना पर आधारित है)

लेकिन सच्च तो यह है कि हर इंसान कभी न कभी - किसी न किसी के लिए  'ईश्वर' का रूप बन सकता है। 
हम अक्सर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि भगवान हमारी ज़रूरतों को कैसे पूरा करते हैं ? 
क्या हमने कभी यह समझने की कोशिश की है कि वह किस तरह और किस रूप में आकर हमारी मदद करते हैं ?

एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के कथन अनुसार :
"जो मानते हैं, उनके लिए सब कुछ एक चमत्कार ही है - 
जो नहीं मानते, वह हर असंभावित घटना को महज़ एक संयोग कह कर  उसकी उपेक्षा कर देते हैं।"

सब कुछ हमारे दृष्टिकोण और रवैये पर निर्भर है 
यह मान्यता - कि सब कुछ एक चमत्कार ही है - हमारे मन को आभार और विनम्रता के साथ भर देती है।
संसार की हर चीज़ को, और जीवन की हर घटना को यदि हम आश्चर्य और 'अहो ' की भावना के साथ देखें , तो जीवन खुशी 
और उत्साह से भर जाता है, आनंदमयी हो जाता है - अन्यथा यह संसार भौतिक विज्ञान (physics) के कुछ निश्चित नियमों और 
रासायनिक प्रतिक्रियाओं (chemical reactions ) से ज्यादा कुछ भी नहीं है।

                                                                   ' राजन सचदेव '




Fifteen Soldiers & the Tea Shop !

This is a true story shared by a soldier in Kupwara Sector of Jammu & Kashmir.
A group of 15 soldiers led by a Major were on the way to their post in the Himalayas where they would be deployed for the next 3 months. 
It was a cold winter & intermittent snowfall made the treacherous climb even more difficult.
"If someone could offer a cup of tea".... the Major thought, knowing it was a futile wish.
They continued their journey for another hour or so when  they came across a shabby structure, which looked like a tea-shop. But soon, their joy turned into disappointment when they saw that it was closed and locked. 
It was late in the evening and they were all tired.

"No tea boys, bad luck", said the Major. But he suggested that they take a little rest there before continuing - as they had been walking for several hours.
"Sir, this is a tea shop and we can make tea ourselves... but we will have to break the lock" suggested one soldier.
The officer was hesitant to accept this unethical suggestion but the thought of a steaming cup of tea for the tired solders made him give the permission.
They were in luck, the place had everything needed to make tea and lots of packets of biscuits.
The soldiers had hot tea & biscuits and were ready for their remaining journey.
The major thought... 'we are disciplined soldiers - not a band of thieves. We had broken the lock and had 
tea & biscuits without the owner's permission'. So, to pay for the tea and biscuits, and the cost to repair the lock - he took out two thousand rupees from his wallet, placed it on the counter under the sugar container, so that the owner would see it. The officer's guilt was somewhat relieved. He pulled down the shutter to close the shop and ordered the soldiers to proceed.

Three months passed by. They were lucky not to lose anyone from the group in the intense insurgency situation. And now, it was time for another team to replace them.
They were on their way back and stopped at the same tea-shop which was open this time and the owner was also present in the shop. The owner - an old man with meager resources was very happy to greet 15 customers. 
While having tea and biscuits, they talked to the old man about his life and experiences - especially about 
selling tea at such a remote location. Was he able to make enough money to support his family?
The old man had many stories to tell - full of love and miracles. “Bhagvaan bahut dyaalu hain (God is very 
kind - merciful) He has always taken care of me and my family” he said in a soft but firm and confident tone 
of voice that showed his strong faith and confidence in God. 
"Aray Baba, if God is so kind and merciful, then why should He keep you in such poverty?"commented 
one of them.
"Sahib! Let me tell you a recent story how God took care of us". Said the old man.
"Three months ago, I was going through very tough times. My only son had been badly beaten up by the terrorists. He was severely injured and needed to be taken to the hospital. But I did not have enough 
money for hospital and medicines - and on top of that, I had to close my shop to take care him.”
With tears of gratitude in his eyes, the old man continued: 
“That evening, I prayed to God for help… and God walked into my shop that night."
"When I opened my shop in the morning, I found the lock broken. At first, I felt unhappy and little angry - that along with other things, I must have lost whatever little money I had left in the shop.
 But then I saw that God had left two thousand rupees on the counter under the sugar pot. I can't tell you Sahib how much that money was worth for me that day. I was able to take my son to hospital and buy medicines for him. My son is alright now… God took care of us. Bhagvaan hai aur bahut dayaalu hai Sahib." (Of course, there is God and He is very kind and merciful)
The light of faith in his eyes was unflinching. Fifteen pairs of eyes met the eyes of their officer and read the clear and unmistakable order in his eyes: "Keep quiet". 
The major got up and paid the bill. He hugged the old man and said, "Yes Baba, I know God is very kind and merciful. 
And by the way, the tea was wonderful and delicious."
Those 15 pairs of eyes did not miss to notice the moisture building up in the eyes of their officer - a sight they had never seen before.

(This is a true story shared by a soldier in Kupwara Sector of Jammu & Kashmir)

The truth is that we all can be ‘God’ to someone sometime.
We often pray to God with requests to meet our needs. 
Have we ever thought of how God meets our needs and have we ever tried to understand how He showers His blessings upon us? 
As a famous scientist once said: 
“If we believe, then everything is a miracle - if we don’t, then we can disregard everything as a co-incidence.”

The difference is in the perspective; in the attitude.
Believing everything as miracle, fills our heart with gratitude and humility. 
When we see everything in the world – every incidence in life with a sense of wonder and awe, life becomes full of joy – otherwise the world is nothing more than a few fixed laws of physics and chemical reactions. 

                                                   ‘Rajan Sachdeva’

Note: the story of soldiers and tea shop of Kupwara is based upon an episode of ‘Radio Ruhaniyat’ by Preet Sahi ji.

Saturday, October 7, 2017

Are there degrees of illusion?

Q.: Are there degrees of illusion?

Maharshi Raman: "Illusion is itself illusory.
Illusion must be seen by one beyond it.
Can such a seer be subject to illusion?
Can he then speak of degrees of illusion?

There are scenes floating on the screen in a cinema show.
Fire appears to burn buildings to ashes.
Water seems to wreck vessels.
But the screen on which the pictures are projected remains un-scorched and dry.
Why?
Because the pictures are unreal and the screen is real.
Again, reflections pass through a mirror;
but the mirror is not in any way affected by the quality or quantity of the reflections on it.

So, the world is a phenomenon on the single Reality, which is not affected in any manner.

Reality is only one.
The discussion about illusion is due to the difference in the angle of vision.
Change your angle of vision to one of jnana (Gyana) and then find the universe to be only Brahman.

Being now in the world, you see the world as such.
Get beyond it and this will disappear: the Reality alone will shine.

            From: ~ Talks with Sri Ramana Maharshi, (Talk 446)

Friday, October 6, 2017

Why did you spill the coffee?

You are holding a cup of coffee when someone comes along and bumps into you 
or shakes your arm - making you spill your coffee everywhere.

"Why did you spill the coffee?"

"Well, because someone bumped into me, of course!"

Wrong answer.

You spilled the coffee because there was coffee in the cup.

If there had been tea in the cup, you would have spilled tea.

Whatever is inside the cup is what will come out.

Therefore, when life comes along and shakes you, whatever is inside you will come out. 
You might be able to fake it for a little while - only until you get over-anxious.

So, we have to ask ourselves...what's in my cup?

When life gets tough, what spills over?

Joy, gratefulness, peace and humility?

Or anger, bitterness, harsh words and reactions?

You choose!

Today - let's work towards filling our cups with gratitude, forgiveness, joy, kindness, 
gentleness and love.

                                Wishing you POSITIVITY IN YOUR CUP....



Thursday, October 5, 2017

मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल Mohabbat ke liye kuchh khaas dil

                                    (Scroll down for Roman script)

  किसी से मेरी मंज़िल का पता पाया नहीं जाता 
  जहाँ मैं हूँ फ़रिश्तों का वहाँ साया नहीं जाता 

  फ़क़ीरी में भी मुझको माँगने में शर्म आती है 
  सवाली हो के मुझसे हाथ फैलाया नहीं जाता 

  मेरे टूटे हुए पा -ए -तलब का मुझपे अहसाँ है 
  तुम्हारे दर से उठके मुझसे अब जाया नहीं जाता 

  मोहब्बत हो तो जाती है - मोहब्बत की नहीं जाती 
 ये शोला ख़ुद भड़क उठता है- भड़काया नहीं जाता 

  हर इक दाग़े तमन्ना को  कलेजे से लगाता हूँ 
  कि घरआई हुई दौलत को ठुकराया नहीं जाता 

  मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं 
  ये वो नग़मा है  जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता 

  मोहब्बत असल में 'मख़मूर' वो राज़े हक़ीक़त है 
  समझ में आ गया है और समझाया नहीं जाता 

                           ' मख़मूर देहलवी '


Kisi say meri manzil ka pataa paaya nahin jaata
Jahaan main hoon farishton ka vahaan saaya nahin jaata

Faqeeri me bhi mujhko maangne me sharm aati hai 
Sawaali ho kay mujhsay haath phailaaya nahin jata 

Mere tootay huye paa-e-talab ka mujh pay ahsaan hai
Tumhaare dar se uthke mujhsay ab jaaya nahin jaata 

Mohabbat ho to jaati hai , mohabbat kee nahin jaati 
Ye shola khud bhadak uthtaa hai bhadkaaya nahin jaata 

Har ik daaghe tamanna ko kaleje say lgaata hoon 
Ki ghar aayi huyi daulat ko thukraaya nahin jaata 

Mohabbat ke liye kuchh khaas dil makhsoos hotay hain 
Ye vo naghmaa hai jo har saaz pay gaaya nahin jaata 

Mohabbat asal me 'Makhmoor' vo raaz-e-haqeeqat hai 
Samajh may aa gya hai aur samjhaaya nahin jaata 

                                'Makhmoor Dehalvi '

Daaghe Tamanna  ......     Sorrow, Grief, Disappointment etc.
Makhsoos               ......       Selected, Reserved, designated etc.



Tuesday, October 3, 2017

The Serenity Prayer

       God ! Grant me the serenity -
       To accept the things I cannot change; 
       Courage to change the things I can;
       and Wisdom to know the difference. 


चमन ज़ंगार है Chaman Zangaar hai

लताफ़त बे-कसाफ़त जलवा पैदा कर नहीं सकती 
चमन ज़ंगार है आईना -ए - बादे बहारी का 
                                     " मिर्ज़ा ग़ालिब "

Lataafat be-kasaafat jalvaa paida kar nahin sakti 
Chaman zangaar hai aaiina-e-baad-e- bahaari ka 
                                                    "Mirza Ghalib "



Lataafat   ------------------ Beauty
Kasaafat ------------------  Virtues 
Zangaar   -----------------  Rusted
Aaiina    ------------------   Mirror
Baade-bahaari -----------Spring breeze 

      Translation:

Beauty without virtue cannot harvest a noteworthy and admirable attraction (for long)
The ‘chaman’ - world (today) is like a rusted image of a fresh breezing garden of the past. 




Monday, October 2, 2017

अपनी लड़ाई बुद्धिमानी से चुनें

एक हाथी नदी में नहा कर वापिस जा रहा था।  
जब वह एक तंग रास्ते से निकल रहा था तो उस ने सामने से आते हुए एक सूअर को देखा जो पूरी तरह से कीचड़ में सना हुआ था। हाथी चुपचाप एक तरफ हट गया और उस गंदे सूअर के लिए रास्ता छोड़ दिया। जब वो सूअर आगे निकल गया तो हाथी वापिस सड़क पर आया और अपनी यात्रा को जारी रखा।
बाद में उस अशुद्ध सूअर ने अपने दोस्तों के साथ इस घटना का ज़िक्र करते हुए बड़े घमंड से कहा, "देखो मैं कितना बड़ा और शक्तिशाली हूं; यहां तक ​​कि हाथी भी मुझे देख कर डर गया और सड़क के नीचे - एक तरफ हट कर मेरे लिए रास्ता छोड़ दिया। 

यह सुनकर, कुछ हाथियों ने अपने मित्र से सवाल किया और ऐसा करने का कारण पूछा । 
क्या वह सच ही उस सूअर से  डर गया था?
हाथी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, "मैं आसानी से उस सूअर को अपने पैर के नीचे  कुचल सकता था, लेकिन मैं साफ था - अभी नहा कर आया था और वह सूअर बहुत गंदा था। रास्ता तंग था - यदि मैं उसके साथ कहीं छू जाता तो मैं भी गंदा हो जाता। और अगर मैं उसे अपने पैर से हटाता या कुचल देता तो भी मेरा पैर गंदा हो जाता। इसलिए उसकी गंदगी से बचने के लिए मैं अलग हट गया और उसके लिए रास्ता छोड़ दिया।"

इस कहानी से पता चलता है:
कि अहसासपूर्ण ज्ञानी आत्माएं डर से नहीं बल्कि नकारात्मकता (negativity) के साथ संपर्क से बचने के लिए ख़ामोश और अलग हो  जाती हैं। अपवित्रता को नष्ट करने के लिए मजबूत और समर्थ होते हुए भी उनकी कोशिश केवल अपवित्रता से दूर रहने और स्वयं को पवित्र बनाए रखने की होती है। 

हमें हर राय, हर टिप्पणी या हर परिस्थिति पर प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता नहीं है। 
अफ़वाहों से बचें - 
यदि लड़ना भी हो तो अपनी लड़ाई बुद्धिमानी से चुनें ... 
और स्वयं को द्रढ़ रखते हुए अपनी यात्रा पर आगे बढ़ते रहें।
                             
                              ' राजन सचदेव '

विश्वास क्या है ?

जब हम किसी बात को बार-बार सुनते हैं ... दो, चार सौ या हजार बार, तो हमें उस पर विश्वास होने लगता है।  

और यदि हमें उसके विपरीत - एक अलग तरह का तर्क बार बार सुनने को मिले, 
तो हमारा विश्वास कमज़ोर हो कर टूटना शुरू हो जाता है।

लेकिन ऐसा विश्वास - जो अपने व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है - ज्ञान बन जाता है

और अपने व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित ज्ञान न तो टूटता है - न ही उसे कमजोर किया जा सकता है। 

इसलिए, चन्द अफवाहों को  सुन कर उनसे से प्रभावित अथवा प्रेरित होने के बजाय
बुद्धिमान लोग अपने अनुभव पर भरोसा करते हैं और तदनुसार कार्य करते हैं।

                                                                         'राजन  सचदेव '

Sunday, October 1, 2017

Three Rules of Nature

                            Three rules of nature:

                                                  First rule
If seeds are not planted in the field, nature fills it with weeds and grass.
Similarly, if we do not feed our mind with positive thoughts
                  then negative thoughts find their way and fill up the empty mind.

                                                Second rule
                    Whatever someone has will be what he passes on.

Fire gives warmth and light
                        The clouds distribute water and coolness
One who is ‘Happy’ shares "happiness"
                            One who is ‘Sad’ shares "Sadness & Sorrow" 
The wise provides "knowledge" 
                            The ‘Pessimist’ spreads negativity, doubts and false beliefs.
Fearful spreads "fear" 
                      And “Fearless” teaches the same - to be free of fear.


                                             Third rule
                     Whatever you get from life, learn to digest - because:

The food; if not digested well - Gives rise to disease

The “Praise”; if not absorbed properly - Gives rise to Ego

Wealth –if not disbursed properly- gives rise to ‘show-off’

Uncontrolled tongue - gives rise to gossips

Opinions, if not controlled – give rise to criticism

Uncontrolled Criticism - gives rise to animosity  

Secrets; if not guarded – give rise to danger 

Sorrow; if not controlled – gives rise to frustration

Pleasure & Desires; if not controlled – give rise to immorality
               

                   These above mentioned rules - 
if understood and followed properly, will empower us.
                                 So, choose wisely and consciously.

'Rajan Sachdeva'

प्रकृति के तीन नियम

                                    प्रकृति  के तीन नियम :

                                                  पहला  नियम

यदि खेत में  बीज न डालें जाएं  तो कुदरत  उसे घास-फूस  से  भर देती है 
ठीक उसी तरह से यदि मन में सकारात्मक विचार न भरे जाएँ  
                                    तो नकारात्मक विचार अपनी जगह  बना लेते हैं 

                                                दूसरा  नियम

                     जिसके  पास  जो होता है  वह वही बांटता  है

अग्नि गर्मी और प्रकाश देती है 
                       तो बादल जल और शीतलता बांटता है 
सुखी "सुख  "बांटता है  
                            और  दुःखी  "दुःख " बांटता  है 
ज्ञानी "ज्ञान" बांटता है  
                               तो भ्रमित  "भ्रम "बांटता है 
भयभीत "भय "  देता और सिखाता है  - 
                         जो स्वयं अभय है वह औरों को भी भय से मुक्त होना सिखाता है


                                             तीसरा नियम

                     जीवन से जो कुछ भी मिले उसे पचाना सीखो क्योंकि :

भोजन  न पचने  पर रोग बढ़ते हैं
                        पैसा न पचने  पर दिखावा बढ़ता  है 
बात  न पचने पर चुगली बढ़ती है 
                      प्रशंसा न पचने पर अंहकार बढ़ता है
निंदा न पचने पर दुश्मनी  बढ़ती है 
                   राज़ (भेद) न पचने पर खतरा बढ़ता है 
दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है 
                   और सुख न पचने पर  पाप बढ़ता है 


What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...