Wednesday, August 17, 2016

चित्त जेथा भयशून्य Where the mind is without fear

Where the mind is without fear 
and the head is held high; 
Where knowledge is free; 
Where the world has not been broken up 
into fragments by the domestic walls;

Where words come out from 
the depth of truth; 
Where tireless striving stretches its arms 
towards perfection
and flow without any hindrance;

Where the clear stream of reason and thoughts 
has not lost its way 
into the dreary desert sand of lowly habits and deeds; 
Where the valor is not divided in hundreds of different pieces;

Where the mind is led forward by thee 
into ever-widening thought and action–
Into that heaven of freedom, 
my father, let my country awake. 

            By: Rabindranath Tagore

Hindi Translation - 
By: कवि शिवमंगल सिंह "सुमन" 

जहां चित्‍त भय से शून्‍य हो 
जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें
जहां ज्ञान मुक्‍त हो 
जहां दिन रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर 
छोटे छोटे आंगन न बनाए जाते हों 

जहां हर वाक्‍य ह्रदय की गहराई से निकलता हो
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्‍त्र नदी के स्रोत फूटते हों
और निरंतर अबाधित बहते हों 
जहां विचारों की सरिता 
तुच्‍छ आचारों की मरू भूमि में न खो जाती हो
जहां पुरूषार्थ सौ सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो 
जहां पर सभी कर्म, भावनाएं, आनंदानुभुतियाँ तुम्‍हारे अनुगत हों

हे पिता, अपने हाथों से निर्दयता पूर्ण प्रहार कर
उसी स्‍वातंत्र्य स्‍वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ


      Original Bengali version

चित्त जेथा भयशून्य ,उच्च जेथा शिर ,
ज्ञान जेथा मुक्त जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड खण्ड क्षुद्रकरि,

जेथा वाकय हृदयेर उत् समुखहते
उच्छ्वसिया उठे , जेथा निर्वारित स्रोते
दशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय-

जेथा तुच्छ आचारेर मरुबालुराशि 
बिचारेर स्रोतःपथे फेले नाइ ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुमि सर्व कर्म चिन्ता आनंदेर नेता-

निज हस्ते निर्दय आधात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित।

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