Sunday, September 21, 2025

सच्चा प्रेम

             पंछी जैसा प्रेम नहीं  -  जो पेड़ सूखे उड़ जाए 
             प्रेम होए तो मछली जैसा - जल सूखे मर जाए 

प्रेम पंछी जैसा नहीं होना चाहिए, जो पेड़ सूखते ही उड़ जाए और किसी और डाल की तलाश करने लगे। 
ऐसा प्रेम सतही है जो केवल अपनी सुविधा और व्यक्तिगत लाभ पर टिका हो। 

सच्चा प्रेम तो मछली जैसा है, जो जल से अलग होकर जी ही नहीं सकती - 
जो जल के सूखते ही प्राण त्याग देती है।

सच्चे प्रेम की कसौटी क्षणिक उन्माद या उसकी लंबी उम्र नहीं, बल्कि उसकी अडिगता है। 
देखना ये है कि कठिनाइयों और अभावों में भी वह कितना स्थिर रहता है। 
सच्चे प्रेम की परख इस बात में है कि जब जीवन रुपी पेड़ की छाँव कम होने लगे - जब सहारा सूखने लगे - जब परिस्थितियाँ साथ न दें — तब क्या वह पुराना प्रेम उड़ जाता है ? समाप्त हो जाता है? या वैसा ही बना रहता है - चाहे मृत्यु का सामना ही क्यों न करना पड़े?

प्रेम की गहराई सुख-समृद्धि में नहीं, बल्कि कठिन परीक्षाओं में प्रकट होती है। 
वही प्रेम सच्चा और अनन्त है जो हर परिस्थिति में एक समान रहे - जो कठिनाई और विपत्ति के समय में भी डांवाडोल न हो और मृत्यु प्रयन्त एकरसता के साथ बना रहे।
                                               " राजन सचदेव "

6 comments:

ऊँची आवाज़ या मौन? Loud voice vs Silence

झूठे व्यक्ति की ऊँची आवाज सच्चे व्यक्ति को चुप करा सकती है  परन्तु सच्चे व्यक्ति का मौन झूठे लोगों की जड़ें हिला सकता है                     ...