एक एक करके सब पुराने महारथी जा रहे हैं
सोचता हूँ इसी तरह एक दिन मैं भी चला जाऊंगा
कुछ देर के लिए लोगों के दिलों में
कुछ खट्टी मीठी यादें रह जाएंगी
फिर समय की धूल सब कुछ ढक लेगी
और एक रात के सपने की तरह -
मैं भी भुला दिया जाऊंगा
~~ ~~
अभी ये सोच ही रहा था कि अकस्मात ही गुरबाणी की ये पंक्तियां याद आ गईं :
"जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि
इन मैं कछु साचो नही नानक बिनु भगवान"
मेरा आज का अस्तित्व कल एक सपना - एक याद बन कर रह जाएगा।
मेरे होने का एहसास - मेरा अहं भाव, मेरी उपस्थिति की सारी आहटें और शोर, धीरे-धीरे ये सब समय के विशाल सागर में विलीन हो जाएँगे।
कुछ ही पल के लिए किसी को थोड़ी सी टीस होगी, कुछ दुःख होगा - कुछ खट्टी-मीठी यादें दिलों में तैरेंगी -
लेकिन फिर सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
समय की धूल सबको ढक लेती है।
यादें भी एक क्षणिक मेहमान की तरह आती हैं और फिर उड़ जाती हैं।
जैसे सुबह आँख खुलते ही सपने गायब हो जाते हैं उसी तरह यादें भी धीरे धीरे धुंधली पड़ जाती हैं।
सब कुछ पहले की तरह ही सामान्य हो जाता है।
किसी के जाने से न तो दुनिया रुकती है और न दुनिया का कोई काम ही रुकता है।
विचारणीय है कि यदि अंतिम मंज़िल विस्मृति ही है तो फिर व्यर्थ के अहंकार और प्रतिस्पर्धा का क्या अर्थ है?
" राजन सचदेव "
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