बेवजह घर से निकलने की ज़रुरत क्या है
मौत से आंख मिलाने की ज़रुरत क्या है
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल
यूँ ही क़ातिल से उलझनें की ज़रुरत क्या है
यूँ ही क़ातिल से उलझनें की ज़रुरत क्या है
जिंदगी एक नियामत - इसे सम्भाल के रख
कब्रगाहों को सजाने की ज़रुरत क्या है
दिल बहलाने के लिए घर में जगह है काफी
दिल बहलाने के लिए घर में जगह है काफी
यूँ ही गलियों में भटकने की ज़रुरत क्या है
(Writer unknown)
(Writer unknown)
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Be-vajah ghar say nikalnay ki zaroorat kya hai
Maut say aankh milaanay ki zaroorat kya hai
Sab ko maloom hai baahar ki hawaa hai qaatil
Yoon hi qaatil say ulajhnay ki zaroorat kya hai
Zindagi ek niyaamat - isay sambaal kay rakh
Qabr-gaahon ko sajaanay ki zaroorat kya hai
Dil behlaanay kay liye ghar me jagah hai kaafi
Yoon hi galiyon me bhataknay ki zaroorat kya hai
(Writer unknown)
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