शर्त - एक रुसी कहानी (A Russian Story)
मूल लेखक: Anton Chekhov
(ब्लॉग के हिन्दी पाठकों के लिए अनुवादित)
एक बैंकर ने अपने कुछ मित्रों को अपने घर में पार्टी के लिए बुलाया जिस में एक वकील भी शामिल था।
पार्टी के दौरान सभी अतिथि एक चर्चा में पड़ गए।
चर्चा का विषय था - "इन दोनों में से क्या अच्छा है - मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास" ?
बैंकर ने आजीवन कारावास की तुलना में मृत्यु को श्रेष्ठ समझा।
जबकि एक युवा वकील ने असहमत होते हुए कहा कि वह मृत्यु के बजाय जेल में रहने का चयन करेगा।
बात बढ़ी तो दोनों के बीच शर्त लगी।
शर्त थी कि यदि वकील पंद्रह साल पूर्णतया एकांत में रह सके तो बैंकर उसे दो मिलियन (बीस लाख ) रुबल का भुगतान करेगा। इस दौरान वकील किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं कर पाएगा लेकिन उसे जो चाहिए वह लिख के खिड़की में रख दे तो उसे पहुंचा दिया जाएगा।
वकील ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
बैंकर ने उसे अपने फार्म हॉउस के पिछवाड़े में बने एक कमरे में बंद कर दिया।
चौकीदार समयानुसार भोजन और आवश्यक सामग्री कमरे में बनी एक खिड़की में रख जाता।
दो चार दिन तो आराम से बीत गए लेकिन कुछ दिनों के बाद वह उदास हो गया और कुछ खीझने लगा ।
उसे बताया गया था कि जब भी वह और बर्दाश्त न कर सके तो वो घण्टी बजा के संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा ।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घंटा एक एक युग के समान लगने लगा । कभी वोअपने बाल नोचता, रोता, तड़पता, चीखता, चिल्लाता - लेकिन शर्त का ख़्याल कर के बाहर से किसी को नहीं बुलाता ।
अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त के अनुसार बीस लाख रुबल मिलने की बात याद करके अपने आप को रोक लेता ।
फिर उसने धीरे धीरे नई नई किताबें मंगवा कर पढ़नी शुरु कर दीं। उसने छै नई भाषाएँ भी सीख लीं।
कुछ साल और बीतने पर उसने धर्म शास्त्र पढ़ने शुरु कर दिए।
अब धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी।
अब उसे किसी और की आवश्यकता का भी अनुभव नही होता था।
वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत - उसका रोना, चीखना, चिल्लाना सब बंद हो चुका था।
इधर, उसके बैंकर दोस्त का व्यापार चौपट हो गया था।
पंद्रह साल पूरे होने को आ रहे थे।
बैंकर को चिंता होने लगी कि शर्त का समय पूरा हो चला था लेकिन उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा।
उसे चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा - वो दिवालिया हो जाएगा।
ऐसा सोच कर - समय पूरा होने से एक दिन पहले बैंकर ने अपने दोस्त को जान से मार देने की योजना बनाई और रात के अँधेरे में उसे मारने के लिये चला गया। जब वो कमरे का ताला खोल कर अंदर गया तो देखा कि उसका मित्र मेज पर सर रख कर सोया हुआ था।
उसके होंठों पर हलकी सी मुस्कुराहट थी और उसका चेहरा चमक रहा था - उसके मुखमंडल पर एक अजीब आभा झलक रही थी।
उसके सर के पास ही एक कागज़ पड़ा था जिस पर एक नोट लिखा हुआ था।
उसने धीरे से वो कागज़ उठाया और पढ़ने लगा।
उस नोट में जो लिखा था वो पढ़ कर उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा।
उस में लिखा था:
प्यारे दोस्त। इन पंद्रह सालों में मैंने वो अनमोल वस्तु पा ली है जिसका कोई मोल नही चुका सकता। मैंने एकांत में रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और अब मैं ये भी जान चुका हूं कि हमारी ज़रुरतें जितनी कम होती जाती हैं हमें उतना ही आनंद और शांति मिलने लगती है।
मैंने इन दिनों में परमात्मा के असीम प्रेम को जान लिया है और असीम शांति को प्राप्त कर लिया है। आज मुझे अनुभव हो रहा है कि बीस लाख रुबल ले कर जिस स्वर्ग की मैंने कल्पना की थी वह सब भौतिक वस्तुएं क्षणभंगुर हैं और दिव्य मोक्ष का मूल्य इन इन सब से अधिक है।
इसलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के धन की कोई ज़रुरत नहीं है।
मैं निर्धारित अवधि से दो तीन घंटे पहले यहां से निकल जाऊँगा और इस तरह तुम हमारे समझौते का उल्लंघन करने से बच जाओगे।"
यह पढ़ कर वकील की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। उसने धीरे से अपने दोस्त का माथा चूमा और वापिस अपने घर चला गया।
उस सुबह जब बैंकर बाद में उठा, तो चौकीदार ने आकर बताया कि वकील खिड़की से बाहर कूद कर निकल गया - और अपनी संपत्ति को छोड़ कर वहां से भाग चुका है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विश्लेषण
इस कहानी में दो प्रमुख पात्र हैं - बैंकर और वकील।
बैंकर अधिकार की स्थिति में रहना पसंद करता है और दूसरों पर अधिकार जमाना पसंद करता है, खासकर उन पर जो लोग उससे असहमत होते हैं।
कहानी की शुरुआत में उसका चरित्र कुछ अलग है।
वह बहुत हंसमुख और आशावादी दिखाई देता है क्योंकि वह तुरंत ही बीस लाख की शर्त लगा लेता है।
लेकिन बाद में, धन की कमी उसे बेईमानी और हत्या की योजना के लिए प्रेरित करती है - यह उसकी कमजोरी को दर्शाता है।
वह जीवन की भौतिकवादी विलासिता से जुड़ा हुआ है और उसकी नज़र में मानव जीवन का महत्व उसकी विलासिता से कम है - क्योंकि वह अपना धन बचाने के लिए वकील को मारने तक की योजना बना लेता है।
लेकिन दोस्त के लिखे नोट को पढ़ने के बाद - ये जानने के बाद कि अब उसे शर्त के पैसों का भुगतान नहीं करना पड़ेगा तो उसके विचार बदल जाते हैं। जब वह अपने दोस्त का माथा चूमता है तो वो भी इसलिए कि अब उसे वो बीस लाख नहीं देने पड़ेंगे।
दूसरी ओर, वह वकील बुद्धिमान और आत्म-विश्वासी है।
वह पंद्रह साल के कारावास में रह कर भी टूटता नहीं है।
वह धैर्यवान और दृढ़ निश्चयी है।
उस ने अपना अधिकांश समय पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत करना शुरु कर दिया - आत्मनिरीक्षण और ध्यान में समय बिताने लगा।
कहानी के आरम्भ में वह एक युवा, अधीर व्यक्ति के रुप में दिखाई देता है
जो बीस लाख के लालच में पंद्रह साल एकान्त में रहने के लिए तैयार हो जाता है।
जो अपने युवा जीवन के सर्वश्रेष्ठ पंद्रह वर्षों को मात्र धन के लिए निछावर करने को तैयार हो जाता है।
लेकिन कालान्तर में उस की उत्सुकता धन और विलासिता की बजाय परम् शांति पाने की ओर अग्रसर होने लगती है।
कहानी के अंत में, भौतिकवादी विलासिता में कोई दिलचस्पी नहीं रखने वाले व्यक्ति के रुप में उनका उदय तब परिलक्षित होता है जब वह बीस लाख का भी त्याग कर देता है और अंतिम समय पर स्वयं अपनी शर्त तोड़ कर चुप चाप रात के अँधेरे में ग़ायब हो जाता है।
इस कहानी को आज के संदर्भ में देखें और समझें
लॉकडाउन की इस परीक्षा की घड़ी में स्वयं को झुंझलाहट,चिंता और भय में न डालें
बल्कि परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करें।
विश्वास रखें कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा ।
शायद कुछ दिनों या कुछ हफ़्तों की ही बात है
लॉक डाउन का पालन करें।
स्वयं भी सुरक्षित रहें, और अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और सारे संसार को सुरक्षित रखने में सहयोग दें
' राजन सचदेवा '
मूल लेखक: Anton Chekhov
(ब्लॉग के हिन्दी पाठकों के लिए अनुवादित)
एक बैंकर ने अपने कुछ मित्रों को अपने घर में पार्टी के लिए बुलाया जिस में एक वकील भी शामिल था।
पार्टी के दौरान सभी अतिथि एक चर्चा में पड़ गए।
चर्चा का विषय था - "इन दोनों में से क्या अच्छा है - मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास" ?
बैंकर ने आजीवन कारावास की तुलना में मृत्यु को श्रेष्ठ समझा।
जबकि एक युवा वकील ने असहमत होते हुए कहा कि वह मृत्यु के बजाय जेल में रहने का चयन करेगा।
बात बढ़ी तो दोनों के बीच शर्त लगी।
शर्त थी कि यदि वकील पंद्रह साल पूर्णतया एकांत में रह सके तो बैंकर उसे दो मिलियन (बीस लाख ) रुबल का भुगतान करेगा। इस दौरान वकील किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई सीधा संपर्क नहीं कर पाएगा लेकिन उसे जो चाहिए वह लिख के खिड़की में रख दे तो उसे पहुंचा दिया जाएगा।
वकील ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
बैंकर ने उसे अपने फार्म हॉउस के पिछवाड़े में बने एक कमरे में बंद कर दिया।
चौकीदार समयानुसार भोजन और आवश्यक सामग्री कमरे में बनी एक खिड़की में रख जाता।
दो चार दिन तो आराम से बीत गए लेकिन कुछ दिनों के बाद वह उदास हो गया और कुछ खीझने लगा ।
उसे बताया गया था कि जब भी वह और बर्दाश्त न कर सके तो वो घण्टी बजा के संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा ।
जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घंटा एक एक युग के समान लगने लगा । कभी वोअपने बाल नोचता, रोता, तड़पता, चीखता, चिल्लाता - लेकिन शर्त का ख़्याल कर के बाहर से किसी को नहीं बुलाता ।
अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त के अनुसार बीस लाख रुबल मिलने की बात याद करके अपने आप को रोक लेता ।
फिर उसने धीरे धीरे नई नई किताबें मंगवा कर पढ़नी शुरु कर दीं। उसने छै नई भाषाएँ भी सीख लीं।
कुछ साल और बीतने पर उसने धर्म शास्त्र पढ़ने शुरु कर दिए।
अब धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी।
अब उसे किसी और की आवश्यकता का भी अनुभव नही होता था।
वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत - उसका रोना, चीखना, चिल्लाना सब बंद हो चुका था।
इधर, उसके बैंकर दोस्त का व्यापार चौपट हो गया था।
पंद्रह साल पूरे होने को आ रहे थे।
बैंकर को चिंता होने लगी कि शर्त का समय पूरा हो चला था लेकिन उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा।
उसे चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा - वो दिवालिया हो जाएगा।
ऐसा सोच कर - समय पूरा होने से एक दिन पहले बैंकर ने अपने दोस्त को जान से मार देने की योजना बनाई और रात के अँधेरे में उसे मारने के लिये चला गया। जब वो कमरे का ताला खोल कर अंदर गया तो देखा कि उसका मित्र मेज पर सर रख कर सोया हुआ था।
उसके होंठों पर हलकी सी मुस्कुराहट थी और उसका चेहरा चमक रहा था - उसके मुखमंडल पर एक अजीब आभा झलक रही थी।
उसके सर के पास ही एक कागज़ पड़ा था जिस पर एक नोट लिखा हुआ था।
उसने धीरे से वो कागज़ उठाया और पढ़ने लगा।
उस नोट में जो लिखा था वो पढ़ कर उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा।
उस में लिखा था:
प्यारे दोस्त। इन पंद्रह सालों में मैंने वो अनमोल वस्तु पा ली है जिसका कोई मोल नही चुका सकता। मैंने एकांत में रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और अब मैं ये भी जान चुका हूं कि हमारी ज़रुरतें जितनी कम होती जाती हैं हमें उतना ही आनंद और शांति मिलने लगती है।
मैंने इन दिनों में परमात्मा के असीम प्रेम को जान लिया है और असीम शांति को प्राप्त कर लिया है। आज मुझे अनुभव हो रहा है कि बीस लाख रुबल ले कर जिस स्वर्ग की मैंने कल्पना की थी वह सब भौतिक वस्तुएं क्षणभंगुर हैं और दिव्य मोक्ष का मूल्य इन इन सब से अधिक है।
इसलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के धन की कोई ज़रुरत नहीं है।
मैं निर्धारित अवधि से दो तीन घंटे पहले यहां से निकल जाऊँगा और इस तरह तुम हमारे समझौते का उल्लंघन करने से बच जाओगे।"
यह पढ़ कर वकील की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। उसने धीरे से अपने दोस्त का माथा चूमा और वापिस अपने घर चला गया।
उस सुबह जब बैंकर बाद में उठा, तो चौकीदार ने आकर बताया कि वकील खिड़की से बाहर कूद कर निकल गया - और अपनी संपत्ति को छोड़ कर वहां से भाग चुका है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विश्लेषण
इस कहानी में दो प्रमुख पात्र हैं - बैंकर और वकील।
बैंकर अधिकार की स्थिति में रहना पसंद करता है और दूसरों पर अधिकार जमाना पसंद करता है, खासकर उन पर जो लोग उससे असहमत होते हैं।
कहानी की शुरुआत में उसका चरित्र कुछ अलग है।
वह बहुत हंसमुख और आशावादी दिखाई देता है क्योंकि वह तुरंत ही बीस लाख की शर्त लगा लेता है।
लेकिन बाद में, धन की कमी उसे बेईमानी और हत्या की योजना के लिए प्रेरित करती है - यह उसकी कमजोरी को दर्शाता है।
वह जीवन की भौतिकवादी विलासिता से जुड़ा हुआ है और उसकी नज़र में मानव जीवन का महत्व उसकी विलासिता से कम है - क्योंकि वह अपना धन बचाने के लिए वकील को मारने तक की योजना बना लेता है।
लेकिन दोस्त के लिखे नोट को पढ़ने के बाद - ये जानने के बाद कि अब उसे शर्त के पैसों का भुगतान नहीं करना पड़ेगा तो उसके विचार बदल जाते हैं। जब वह अपने दोस्त का माथा चूमता है तो वो भी इसलिए कि अब उसे वो बीस लाख नहीं देने पड़ेंगे।
दूसरी ओर, वह वकील बुद्धिमान और आत्म-विश्वासी है।
वह पंद्रह साल के कारावास में रह कर भी टूटता नहीं है।
वह धैर्यवान और दृढ़ निश्चयी है।
उस ने अपना अधिकांश समय पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत करना शुरु कर दिया - आत्मनिरीक्षण और ध्यान में समय बिताने लगा।
कहानी के आरम्भ में वह एक युवा, अधीर व्यक्ति के रुप में दिखाई देता है
जो बीस लाख के लालच में पंद्रह साल एकान्त में रहने के लिए तैयार हो जाता है।
जो अपने युवा जीवन के सर्वश्रेष्ठ पंद्रह वर्षों को मात्र धन के लिए निछावर करने को तैयार हो जाता है।
लेकिन कालान्तर में उस की उत्सुकता धन और विलासिता की बजाय परम् शांति पाने की ओर अग्रसर होने लगती है।
कहानी के अंत में, भौतिकवादी विलासिता में कोई दिलचस्पी नहीं रखने वाले व्यक्ति के रुप में उनका उदय तब परिलक्षित होता है जब वह बीस लाख का भी त्याग कर देता है और अंतिम समय पर स्वयं अपनी शर्त तोड़ कर चुप चाप रात के अँधेरे में ग़ायब हो जाता है।
इस कहानी को आज के संदर्भ में देखें और समझें
लॉकडाउन की इस परीक्षा की घड़ी में स्वयं को झुंझलाहट,चिंता और भय में न डालें
बल्कि परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करें।
विश्वास रखें कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा ।
शायद कुछ दिनों या कुछ हफ़्तों की ही बात है
लॉक डाउन का पालन करें।
स्वयं भी सुरक्षित रहें, और अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और सारे संसार को सुरक्षित रखने में सहयोग दें
' राजन सचदेवा '