यूँ ही कभी कोई आशना पूछ बैठे कि "क्या भेजोगे इस बरस ?"
तो भीगा सा एक ख्याल आता है :
गुलों को सुनना ज़रा तुम - सदायें भेजी हैं
गुलों के हाथ बहुत सी दुआएं भेजी हैं
जो आफ़ताब कभी भी गुरूब नहीं होता
हमारा दिल है - इसी की शुआयें भेजी हैं
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगतीं
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं -भेजी हैं
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है
पहन लो अच्छी लगेंगी - घटायें भेजी हैं
तो भीगा सा एक ख्याल आता है :
गुलों को सुनना ज़रा तुम - सदायें भेजी हैं
गुलों के हाथ बहुत सी दुआएं भेजी हैं
जो आफ़ताब कभी भी गुरूब नहीं होता
हमारा दिल है - इसी की शुआयें भेजी हैं
तुम्हारी खुश्क-सी आँखे भली नहीं लगतीं
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं -भेजी हैं
सियाह रंग, चमकती हुई किनारी है
पहन लो अच्छी लगेंगी - घटायें भेजी हैं
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो - हमने ख़ताएँ भेजी हैं
"गुलज़ार "
सज़ाएँ भेज दो - हमने ख़ताएँ भेजी हैं
"गुलज़ार "
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