पटाखों की दुकान से कुछ दूर अपने हाथों में
मैने उसे कुछ सिक्के गिनते देखा
मैने उसे कुछ सिक्के गिनते देखा
एक गरीब बच्चे की सूनी आखों मे
कल मैने दिवाली को मरते देखा
कल मैने दिवाली को मरते देखा
थी चाह उसे भी - कि वो नए कपडे पहने
मगर पुराने कपड़ों को उसे साफ करते देखा
हम करते है सदा अपने दुख की नुमाईश
मगर उसे चुप -चाप दुख सहते देखा
मगर उसे चुप -चाप दुख सहते देखा
जब मैने पूछा, "बच्चे, कुछ चहिये तुम्हे"?
मुस्कुराते हुए उसका सर मैंने "ना" में हिलते देखा
वो यूं तो उम्र में - था अभी बहुत छोटा
उसके अंदर इक 'बड़े-आदमी' को पलते देखा
कल रात सारे शहर के दीपों की लौ में
उसके बेबस से चेहरे को मैंने हँसते देखा
हम चाहते हैं सदा शान से ज़िंदा रहना
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा
लोग कहते है, त्योहार होते है खुशियों के वास्ते
पर मैने उसे मन ही मन घुटते और तरस्ते देखा
आखिर ऐसा क्यों ?
थोडी सी खुशी किसी गरीब बच्चे को दे के देखो
आपको भी खुशी मिलेगी..!!!
Author: Unknown
Help Poor children...................
कर के देखो ……… बहुत अच्छा लगेगा
नोट : इसके लेखक का नाम तो मालूम नहीं मगर इस नज़्म के भाव बहुत सुंदर लगे
मैंने चंद लाईनों में- क़ाफ़िया मिलाने के लिए - कुछ लफ्ज़ बदल दिए हैं
With apologies from the original writer.
( राजन सचदेव )
बहुत सुंदर रचना है ।
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