ज़िन्दगी की दौड़ में .....
तजुर्बा कच्चा ही रह गया
हम सीख न पाये 'फ़रेब '
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में ……
जब, जहाँ चाहा, हंस लेते थे
जब, जहाँ चाहा, रो लेते थे
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
By: Unknown Author
तजुर्बा कच्चा ही रह गया
हम सीख न पाये 'फ़रेब '
और दिल बच्चा ही रह गया !
बचपन में ……
जब, जहाँ चाहा, हंस लेते थे
जब, जहाँ चाहा, रो लेते थे
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए
और आंसुओ को तन्हाई !
By: Unknown Author
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