कल बैठे बैठे साहिर लुध्यानवी साहिब की एक नज़्म की चंद पंक्तियाँ याद आ गई तो सोचा कि इन्हीं पंक्तियों के माध्यम सेआप सब का भी धन्यवाद
करता चलूँ ……
करता चलूँ ……
"पल दो पल मैं कुछ कह पाया इतनी ही सआदत काफी है
पल दो पल तुमने मुझको सुना इतनी ही इनायत काफी है ।"
मैं नहीं जानता कि इन 80 मैम्बर्स के इलावा और कितने लोग मेरा ब्लॉग पढ़ते होंगे, या पसंद करते होंगे मगर गुरु -कृपा से जो कुछ भी मैं कह पाया वो मेरी खुशनसीबी है और अगर आप लोगों ने उसे पढ़ा या सुना, तो वो भी प्रभु कृपा के साथ साथ आप की इनायत ही है
इसलिए … ब्लॉग को पढ़ने वाले सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद ॥
बतौर साहिर साहिब :
बतौर साहिर साहिब :
"सागर से उभरी लहर हूँ मै सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का पसीना हूँ फिर मिट्टी में सो जाऊँगा "
धन्यवाद
"राजन सचदेव "
"राजन सचदेव "
मेरे विचार में साहिर साहिब की उस मशहूर नज़्म को भी यहाँ लिख देना उचित ही होगा
आप भी देखिये कि जीवन की इस कटु सच्चाई को साहिर साहिब ने किस खूबसूरती और हलीमी से पेश किया है ..............
"मैं पल दो पल का शायर हूँ पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए
कुछ आहेँ भर कर लौट गए कुछ नग़मे गा कर चले गए
वो भी इक पल का किस्सा थे मैं भी इक पल का किस्सा हूँ
कल तुम से जुदा हो जाऊँगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
पल दो पल मैं कुछ कह पाया इतनी ही सआदत काफी है
पल दो पल तुमने मुझको सुना इतनी ही इनायत काफी है
कल और आएँगे नग्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहने वाले तुम से बेहतर सुनने वाले
हर नसल इक फसल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महंगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
सागर से उभरी लहर हूँ मै सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का पसीना हूँ फिर मिट्टी में सो जाऊँगा
कल कोई मुझको याद करे क्यों कोई मुझको याद करे
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक़्त अपना बरबाद करे"
(अब्दुल हयी "साहिर लुध्यानवी")
ये नज़्म जितनी मुझे याद है, उतनी यहाँ लिख दी है
अगर किसी के पास इसका बाकी हिस्सा हो तो कृपया कमेंन्ट्स में शेअर करें ।
मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
ReplyDeleteहर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
रिश्तों का रूप बदलता है, बुनियादें खत्म नहीं होतीं
ख़्वाबों और उमँगों की मियादें खत्म नहीं होतीं
इक फूल में तेरा रूप बसा, इक फूल में मेरी जवानी है
इक चेहरा तेरी निशानी है, इक चेहरा मेरी निशानी है
मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
तुझको मुझको जीवन अम्रित अब इन हाथों से पीना है
इनकी धड़कन में बसना है, इनकी साँसों में जीना है
तू अपनी अदाएं बक्ष इन्हें, मैं अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने लिए सोचीं थी कभी, वो सारी दुआएं देता हूँ
मैं हर इक पल का शायर हूँ हर इक पल मेरी कहानी है
हर इक पल मेरी हस्ती है हर इक पल मेरी जवानी है
Thank you very much Sandip Bagal ji.
ReplyDeleteNone of the 3 books of Sahir's Shayari that I have in my library have this complete version.and I have lost the one that had it.
Unfortunately, most people know only the short movie version of this Nazm and that is what is posted on most of the on line sites. Thank you again for taking time to reply to my request.
Rajan.