जर्मनी में एक लॉ प्रोफ़ेसर ने एक बार अपने छात्रों को एक केस स्टडी दी जो देखने में बहुत ही साधारण सी लग रही थी।
कहानी के अनुसार, दो पड़ोसी आपस में एक तीखे विवाद में उलझे हुए थे।
एक पड़ोसी के पास सेब के पेड़ों की कतारें थीं जिसकी भारी शाखाएँ बाड़ के ऊपर तक फैली हुई थीं।
दुसरे पड़ोसी के बाग़ में टूलिप के फूल लगे थे।
उसने सेब के बगीचे के मालिक से शिकायत की कि पतझड़ के मौसम में, पड़ोसी के पके हुए सेब गिरकर सीधे उसके फूलों के बगीचे में गिरे और उसके नाज़ुक ट्यूलिप के फूलों को कुचल कर बर्बाद कर दिया ।
ट्यूलिप के मालिक ने अपने बर्बाद हुए फूलों के लिए मुआवज़ा माँगा।
सेब उगाने वाले ने ज़ोर देकर कहा कि ये तो प्रकृति की देन हैं, इसमें उसकी कोई गलती नहीं है ।
ये किस्सा सुना कर प्रोफेसर ने छात्रों से पूछा कि कानून के अनुसार किस की बात सही मानी जानी चाहिए।
छात्रों ने उत्सुकता से इसमें भाग लिया।
उनमें से आधे छात्रों ने संपत्ति कानून, नागरिक संहिता और मिसालों का हवाला देते हुए पूरे जोश के साथ ट्यूलिप के मालिक के पक्ष में तर्क दिए।
बाकी के आधे छात्रों ने प्राकृतिक कानून और स्वामित्व की सीमाओं का हवाला देते हुए, सेब के बाग के मालिक का उतनी ही ज़ोरदार तरीके से बचाव किया।
परीक्षा के पेपर तर्क, संदर्भों और लैटिन वाक्यांशों से भरे हुए थे।
जब प्रोफ़ेसर ने आखिरकार पर्चों के ढेर से सर उठाया तो वो न तो मुस्कुराए और न ही भौंहें चढ़ाईं।
केवल इतना ही कहा:
"सेब पतझड़ में गिरते हैं, और टूलिप के फूल बसंत में खिलते हैं।"
कमरे में सन्नाटा छा गया।
कुछ छात्र अपनी सीटों पर हिलने लगे। कुछ एक ने विरोध में हाथ उठाना शुरु किया, लेकिन प्रोफ़ेसर ने धीरे से कहा:
"कानून का हवाला देने से पहले अपनी आँखों का इस्तेमाल करो।
बहस करने से पहले अपने दिमाग का इस्तेमाल करो।
बेशक कानून मायने रखता है—लेकिन सामान्य ज्ञान उससे ज़्यादा ज़रुरी है।"
और यह कहकर, उन्होंने कागज़ इकट्ठा किए और कमरे से बाहर चले गए—एक ऐसा सबक देकर जो शायद कोई भी पाठ्यपुस्तक कभी नहीं सिखा सकती।
(एक मित्र से - साभार सहित)
बिल्कुल सही। सामान्य ज्ञान बहुत से सवालों का समाधान कर देता है।🙏
ReplyDeleteBeautiful 🙏
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteVery beautiful concept dhan nirankar ji
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