आईना ये मुझसे रोज़ कहता है
अक़्स तेरा क्यों बदलता रहता है
उम्र है कि रोज़ ढ़लती जाती है
रोज़ ही चेहरा बदलता रहता है
इक मुकाम पे कहाँ ये रुकता है
ज़िंदगी का दरिया बहता रहता है
जिस्म और रुह का रिश्ता है क्या
कैसे बनता है ये कैसे मिटता है
कौन आता है - कहां से आता है
कौन लेता जन्म - कौन मरता है
है यही विधान क़ुदरत का यहां
बीजते हैं जो वही तो मिलता है
ज्वार भाटा है ये खेल शोहरत का
आज चढ़ता है तो कल उतरता है
डूब जाता है वो सूरज शाम को
सुबह दम जो शान से निकलता है
मर्ज़े -दिल की कुछ दवा नहीं मिलती
इश्क़ का हल कब कहां निकलता है
जब भी मैं तेरे क़रीब होता हूँ
दिल में 'राजन ' इक नशा सा रहता है
' राजन सचदेव '
WoW ! A deep seated and well meaning poetical muse.....
ReplyDeleteThank you, Dr. Gulati ji
DeleteVery true
ReplyDeleteReality of Life 🙏
ReplyDelete👍👍🎊🙏very nice ji 👌 wah ji
ReplyDeleteAbsolutely true.Bahut hee Uttam aur shikhshadayak bhav wali Rachana ji.🙏
ReplyDeleteBeautiful 🙏🙏
ReplyDeleteWah ji wah Keya baat hai ji. 👌🙏🙏
ReplyDeleteWah Ji Wah, Uncle Ji 🙏
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