Saturday, June 29, 2024

क़र्ज़ की अदायगी

एक सज्जन ने अपने घर के लिए क़र्ज़ लेने के लिए दरख़्वास्त दी 
बैंक मैनेजर ने सब काग़ज़ात देख के चैक लिख दिया 
और चैक पर दस्तख़त कर के उनके  सामने रख दिया 

उस सज्जन ने भावुक हो कर हाथ जोड़ कर कहा - 
"आप ने इस नाचीज़ ग़रीब पर इतनी मेहरबानी - इतनी नवाज़िश की है - 
      मैं आप का ये क़र्ज़ जीवन भर नहीं उतार पाउँगा -

मैनेजर ने झट से चैक उठा कर फाड़ दिया। 

कभी कभी ज़्यादा उर्दू बोलना महंगा भी पड़ सकता है। 


Saturday, June 22, 2024

दुआ है वो जो सच्चे दिल से निकले

कल शाम रजनी जी और जगप्रीत ठाकुर जी के नए आवास पर सत्संग के बाद बाहर लॉन में कुछ भाई बहनें साथ बैठे थे। 
एक ने पूछा - क्या हम एक ही अरदास बार बार कर सकते हैं ? या एक ही बार करनी चाहिए?
मैंने कहा कि मेरे विचार में तो ये व्यक्तिगत भावना की बात है। 
वैसे तो एक बार की हुई अरदास ही काफी है - एक ही बार की हुई अरदास भी निरंकार प्रभु तक पहुँच जाती है 
लेकिन अगर अपनी तसल्ली न हो - तो अपने मन की तसल्ली के लिए बार बार मांगने में  भी क्या हर्ज़ है। 
गुरबाणी में कहा है - 
                  " कीता लोड़िये कम्म सो हरि पै आखिए "
अर्थात कोई काम हो - कोई इच्छा हो या कोई मुश्किल आ पड़े तो हरि से अर्थात निरंकार प्रभु से अरदास करो। 

और दूसरी तरफ - ज्ञानी लोग ये मानते हैं कि - 
                   "बिन बोलियां सब किछ जाणदा किस आगे कीचै अरदास "
अर्थात प्रभु तो बिना कहे ही सब कुछ जानते हैं इसलिए अरदास करने की क्या ज़रुरत है?

अरदास करना या न करना - 
एक ही बार - या बार बार अरदास करना - 
ये सब व्यक्तिगत भावनाओं पर निर्भर करता है।   
हर भक्त की अपनी अवस्था होती है। अपनी भावनाएं होती हैं।  
इसलिए जैसा किसी को अच्छा लगे - जिस तरह किसी की तसल्ली हो उसके लिए वही ठीक है।  

कल की इन बातों को याद करके आज एक विचार मन में उठा ---

           " घबरा के ज़िंदगी के ग़मे-लाज़वाल से 
            करते हैं हम दुआएँ अपने रब से बार बार 
            पर बार बार मांगने से 'राजन' क्या होगा 
            दुआ है वो जो सच्चे दिल से निकले एक बार "

केवल शुद्ध हृदय से की हुई अरदास - प्रार्थना ही ईश्वर तक पहुँचती है। 
                       ' राजन सचदेव "

लाज़वाल    =   न खत्म होने वाला - या कम न होने वाला - जिस का पतन न हो - जिस में कोई कमी न आये 
ग़मे-लाज़वाल   = कम न होने वाला दुःख 


Prayer from a Pure Heart --- Dua hai vo jo Sachay dil say niklay

Yesterday evening - after the Satsang at the new residence of Rajni Ji and Jagpreet Thakur Ji - some brothers and sisters were sitting by me on the lawn outside.

One of them asked - can we do the same Ardaas repeatedly? Again and again?
Or should we do it only once? 

I said - this is simply a matter of personal belief and sentiments. 
Although a one-time Ardaas - prayer is enough - because even a one-time Ardaas can reach Almighty Nirankar.

However, if you are not satisfied - then there is no harm in asking again and again - for the satisfaction of your mind. 
As it is said in Gurbani -
                             " Kita lodiye kamm so Hari pai aakhie "
Meaning -
If you need something to be done -- if you have a desire - or if you are facing some difficulty, then do Ardaas - pray to the Lord.

But on the other hand - the Gyanis believe - 
                            " Bin boliyan sab kich jaanada kis aagay kichai Ardaas "
Meaning - 
If God knows everything without saying, then what is the need to do Ardaas? 

To pray or not - To pray once or repeatedly -
All this depends on personal feelings.
Every Bhakt - every devotee has their own state of mind - their own state in Bhakti. Their own feelings and emotions.

So whatever one likes - whatever belief is satisfying to someone, that is the right path for them.

While remembering these conversations of yesterday,  a thought came to my mind today ---

                "Ghabraa kay zindagi kay gam-e-laazawaal say 
                 Kartay hain ham duaen apnay Rab say baar baar 
                 Par baar baar maangnay say 'Rajan' kya hogaa 
                 Dua hai vo jo Sachay dil say niklay ek baar "

The Prayer - that is prayed from a pure heart and with a sincere devotion reaches God.
                                        " Rajan Sachdeva "

Gam-e-Laazawaal     = Never-ending sufferings 

Thursday, June 20, 2024

क्या ज़िंदगी इक ख़्वाब है?

क्या ज़िंदगी इक ख़्वाब है - इक खुशनुमा गुमान है? 
या हक़ीक़त की ज़िया है - रुह की पहचान है 

क्या साथ लेकर आती है सदियों के तजुर्बात-ओ-फ़न 
या नई तख़लीक़ है - नासमझ है, नादान है 

क्या सुख और दुःख में डूबा इक अफ़साना है ये ज़िंदगी?
या कुछ अधूरी ख्वाहिशों को पाने का अरमान है 

क्या ज़िंदगी पुराने रस्म-ओ-राहों का है सिलसिला 
या नए आयाम पाने का नया रुझान है 

क्या पुरानी धारणाओं तक ही ये महदूद है 
या तख़य्युल की ये लामहदूद नई उड़ान है 

क्या हज़ारों हसरतों का मजमूआ है ज़िंदगी 
या ज़िंदगी का मक़सद केवल धर्म और ईमान है 

यूं तो दौड़ है ज़मीं से आसमां तलक मगर 
सब को जान के भी अपने आप से अनजान है 

दाना ये कहते हैं दिल का आईना है ज़िंदगी 
नुक़्ताचीनी का नहीं - ख़ुदबीनी का सामान है 

क्या ज़िंदगी सवाल है ? या कोई इम्तेहान है?
क्या ज़िंदगी इक फ़र्ज़ है या क़र्ज़ का भुगतान है?

या हस्ती और वुजूद की 'राजन' हक़ीक़त जान कर 
जिस्म-ओ-जाँ की हद से पार होने का इम्कान है?
                               " राजन सचदेव "

खुशनुमा गुमान          =  सुखद भ्रम
ज़िया                         =  प्रकाश,ज्योति,ओज Flash, आभा, चमक Glow  आलोक  Illumination  

तजुर्बात-ओ-फ़न       = अनुभव और प्रतिभाएँ   Experiences and Talents 
नई तख़लीक़              =  नई रचना  New Creation 
सिलसिला                 =  शृंखला  क्रम अनुक्रम, परिपाटी  Continuation Succession 
नए आयाम               = नए  परिमाण -  नए गंतव्य नया  प्रसार    New Dimensions, New destinations 
रुझान                       = प्रवृत्ति  Trend 
महदूद                     =  सीमित  Limited 
तख़य्युल                  = सोच विचार - विचारधारा Thoughts, Ideas, Ideology  
लामहदूद                 = असीमित Limitless 
मजमूआ                  = संग्रह , संकलन  Collection, Accumulation 
दाना                        =  विद्वान, समझदार, अक़्लमंद  Wise, Intelligent 
नुक़्ताचीनी               = आलोचना   Criticism 
ख़ुदबीनी                 = आत्मनिरीक्षण, स्वयं का निरीक्षण, अपनेआप को देखना Introspection, Self-inspection, 
फ़र्ज़                        = कर्तव्य  Duty 
क़र्ज़ का भुगतान      = क़र्ज़ लौटाना - ऋण की वापसी  To repay the old debts 
हस्ती                       = अस्तित्व  वास्तविकता - व्यक्तित्व - आंतरिक वास्तविकता  Existence, Inner Reality  सामर्थ्य, क्षमता 
वुजूद                      =  स्थूल अस्तित्व  Physical existence, Presence, 
हक़ीक़त                = वास्तविकता, सत्यता, सच्चाई   Reality, Truth 
जिस्म-ओ-जाँ         =  शरीर और प्राण अथवा मन  Body and Mind 
हद                        =  सीमा Boundary 
इम्कान                  = संभावना Possibility Prospect, Probability, Likelihood  

Kya Zindgi ik Khwaab hai? Is Life a Dream

                               (Please scroll down for English translation)

Kya zindgi ik khwaab hai - ik khushnuma gumaan hai? 
Ya haqeeqat kee ziya hai - Rooh kee pehachaan hai 

Kya saath lay kar aati hai sadiyon kay Tajurbaat-o-Fun 
Ya Nayi Takhleeq hai - Naasamajh hai, Naadaan hai 

Kya sukh aur duhkh mein dooba ik afsaana hai ye zindgi? 
Ya kuchh adhoori  khwaahishon ko paanay ka armaan hai 

Kya zindagi puraanay rasm-o-raahon ka hai silsilaa 
Ya naye aayaam paanay ka naya rujhaan hai 

Kya puraani dhaarnaon tak hee ye mehdood hai 
Ya Takhayyul kee ye laa-mehdood nayi udaan hai 

Kya hazaaron hasraton ka majmooaa hai zindgi 
Ya zindgi ka maqasad keval dharm aur Imaan hai 

Yoon to daud hai zameen say aasmaan talak magar 
Sab ko jaan kay bhee apnay aap say anjaan hai 

Daana ye kehtay hain dil ka aaeena hai zindgi
Nuqtaacheeni ka nahin - khudbeeni ka saamaan hai 

Kya zindgi Sawaal hai ? ya koyi imtehaan hai? 
Kya zindgi ik Farz hai ya Qarz ka bhugtaan hai? 

Ya Hasti aur Vujood kee 'Rajan' haqeeqat jaan kar 
Jism-o-Jaan kee had say paar honay ka imkaan hai? 
                                    " Rajan Sachdeva " 

Khushnuma Gumaan = A Pleasant Delusion 
Ziya                                = Light, flash, Glow, Illumination 
Tajurbaat                      = Experiences 
Fun                                 =  Talents 
Nayi Takhleeq              = New Creation 
Silsila                             = Chain, Series, Continuation, Succession 
Naye Aayaam               = New Dimentions
Rujhaan                         = Trend
Mehdood                       = Limited 
Takhayyul                     = Thoughts, ideology 
LaaMehdood                = Limitless, Unlimited 
Majmooaa                     = Collection, Accumulation 
Daana                             = Wise, Intelligent 
Nuqtacheeni                  =  Criticism,  Nitpicking
Khudbeeni                     = introspection,  Self-inspection, To see oneself 
Farz                                 = Duty 
Qarz ka bhugtaan         = To repay the old debts 
Hasti                               = Existence, Personality, Inner Reality
Vujood                            = Physical Existence, Appearance 
Haqeeqat                        = Reality, Truth 
Jism-o-Jaan                   = Body and Mind 
Had                                  = Boundary
Imkaan                            = Possibility, Prospect, Probability
      
                                     English Translation

Is life a dream - a pleasant illusion?
Or is it the manifestation of reality - the identity of the soul

Does it bring with it the experiences and Talents of centuries (Through reincarnation)
Or is it a newly created life - Unwise, Immature and Naive 

Is life a tale drenched in happiness and sorrow?
Or is it here to achieve some unfulfilled desires

Is it supposed to be a continuous series of old rituals and ways
Or to start a new trend to achieve new dimensions

Is it limited to continuing old beliefs and dogmas
Or is it an unlimited flight of imagination

Is life a collection of thousands of desires 
Or is the purpose of life only to follow religion and faith

Though it is racing from the earth to the sky
But even after knowing everything, it is unaware of itself.

The wise say that life is the mirror of the heart
It is not a tool for nitpicking but for self-examination

Is life a query? Is it a test?
Is life a duty or a payment of old debts?

Or after knowing the reality of existence and being
Is it an opportunity to cross the limits of body and Mind - (and achieve Moksha)?
                  " Rajan Sachdeva "

Saturday, June 8, 2024

Course of Karma cannot be Averted - Avashyamev Bhoktavyam Kritam Karma

AvashyaMeva Bhoktavyam Kritam Karma Shubhaashubham
Na Bhuktam Kshiyate Karma Janma Koti Shatairapi 
                                     Shiv Purana 23 -39

Everyone has to certainly face the consequences of their good and bad deeds.
No deed is eradicated without giving its results - even in infinite time or millions of births.

Whatever deeds we do - good or bad - we will have to reap their consequences at some time. 
No one can escape this law of nature.

Just like if a seed is sown in the soil, in due course of time, it blossoms and takes the form of a tree - 
and when the right time comes, fruits and flowers automatically come out on the trees - on their own.
In the same way - the good and bad deeds done in life also bring their fruits at some time - automatically. 
No one has ever been able to escape this law of nature.

Even Gurus, Peers, and Avatars could not escape this law of Karma.
By reading and observing the life stories of great men, Gurus, Pirs, Prophets, and incarnations, we find that even they could not escape this principle of Karma.

Sant Kabeer ji Says:

Karm gati Taaray Nahin Taree
Muni Vasishth say Gyani Dhyani  Shodh kay Lagan dharee 
Bhayo Banwas, Maran Dashrath ko, Ban mein Bipati paree 
Seeta ko hari lay gayo Raavan Suvarn Lank jaree 
Kahay Kabeer Suno Bhayi Saadho - honi ho kai rahee.

Meaning:
The course of Karma cannot be averted.
A great, wise sage like Rishi Vasishth thoughtfully calculated an auspicious time for the coronation of Lord Rama - 
but at that very moment, Lord Rama was exiled instead of coronation 
- and due to this grief, Father Dasharath died 
- Lord Rama had to face many calamities in the forest 
- Ravana kidnapped Mother Sita. 
Despite being Gyani, a great scholar, and Pandit - Ravan and his kingdom were destroyed due to his deeds - his golden Lanka was burnt to ashes.
Saint Kabir Ji says Destiny is inevitable - it's bound to happen.

The course of Karma cannot be averted.
Everyone has to bear the consequences of their deeds
Because - No Karma is ever annihilated without delivering its result.
                   " Rajan Sachdeva "


अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म -- कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है

        अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्
        न भुक्तं क्षीयते कर्म जन्म कोटि शतैरपि ।।
                                  शिव पुराण 23 -39 

हर अच्छे और बुरे कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। 
कोई भी कर्म अपना फल प्रदान किए बिना अनंत काल अथवा कोटि जन्मों तक भी नष्ट नहीं होता। 

अर्थात अच्छे अथवा बुरे - जैसे भी कर्म हम करेंगे - उनका फल हमें कभी न कभी भोगना ही पड़ेगा। 
प्रकृति के इस नियम से कोई भी नहीं बच सकता। 

जैसे धरती में बीज डाल दिया जाए तो कलांतर में वह प्रफुल्लित हो कर वृक्ष का रुप धारण कर लेता है -
और समुचित समय आने पर स्वयंमेव ही वृक्षों पर फल और फूल निकल आते हैं। 
उसी प्रकार - जीवन में किये हुए अच्छे और बुरे कर्म भी अपने आप ही - समय आने पर स्वतः ही अपना फल देने के लिए आते रहते हैं। 

आज तक कोई भी प्रकृति के इस नियम से बच नहीं पाया है। 
यहां तक कि गुरु पीर और अवतार भी कर्म के इस बंधन से मुक्त नहीं हो पाए। 
महानपुरुषों, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों और अवतारों की जीवन गाथाओं को पढ़ने और देखने से पता चलता है कि वो भी कर्म के इस सिद्धांत से बच नहीं पाए। 

       कर्म गति टारे नहीं टरी 
       मुनि वसिष्ठ से ज्ञानी ध्यानी शोध के लगन धरी 
       भयो बनवास, मरण दसरथ को, बन में बिपति परी 
       सीता को हरि ले गयो  रावण सुवर्ण लंक जरी 
       कहत कबीर सुनो भई साधो होनी हो कै रही  
 
संत कबीर जी कहते हैं कि कर्म की गति टल नहीं सकती। 
ऋषि वशिष्ठ जैसे महान ज्ञानी ध्यानी मुनि ने सोच समझ कर भगवान राम के राज्य अभिषेक का मुहूर्त निकाला 
- लेकिन उसी मुहूर्त में भगवान राम को राजतिलक के स्थान पर बनवास मिल गया 
 इस दुःख के कारण ही पिता दशरथ की मृत्यु हो गई 
- भगवान राम को वन में कई विपत्तियों का सामना करना पड़ा 
- रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया। 
महान विद्वान ज्ञानी और पंडित होते हुए भी अपने कर्मों के कारण रावण का सर्वनाश हो गया और उसकी स्वर्ण-लंका भी जल कर राख  हो गई। 
कबीर जी महाराज फ़रमाते हैं कि होनी तो हो कर ही रहती है।  

अर्थात हर किसी को अपने कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है 
क्योंकि कोई भी कर्म अपना फल प्रदान किए बिना नष्ट नहीं होता। 
                       " राजन सचदेव "

नोट :
विभिन्न शास्त्रों में उपरोक्त श्लोक के कुछ विभिन्न रुप भी मिलते हैं :

कृतकर्मक्षयो नास्ति कल्पकोटिशतैरपि ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ॥ ३९ ॥
              शिव पुराण 

ननुनाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्॥ 
          -- ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४

यादृशं कुरुते कर्म तादृशं फलमाप्नुयात् ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।।
                        देवीभागवत ०६/०९/६७

Thursday, June 6, 2024

People who refuse to learn from the past

A nation or the people who refuse to learn from its past and fail to see and secure its future by examining the current circumstances are eventually doomed and annihilated by time. 

Greed and selfishness - lust for short-term gain and patty selfish motives - coupled with over-confidence and ego - that nothing can happen to us - are the biggest hurdles that limit one's progress - not only one individual's life - but the whole nation, its people, and culture. 
Mistakes and follies made by one generation affect the next generations. 
The next generations have to face the consequences and pay the price. 

History is not for reading only. 
While learning and analyzing past history, one should learn from mistakes their ancestors made - and try to correct them - not only for themselves but also for future generations. 

One should not think and live just for himself - only for short-term personal gains and satisfaction. Even animals can do that.
Only humans have the faculty of imagining the future and doing something that will ensure the security and well-being of coming generations.
                                                " Rajan Sachdeva "

अल्पकालिक लाभ और स्वार्थ

जो राष्ट्र या लोग अपने अतीत से कुछ भी सीखने से इनकार कर देते हैं और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भी अपने भविष्य को सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं, वे अंततः समय के साथ बर्बाद और नष्ट हो जाते हैं।

लालच और स्वार्थ - अल्पकालिक लाभ की लालसा और चंद निजी स्वार्थी इरादों की पूर्ती के लिए किए हुए काम - शायद कुछ देर के लिए तो हमें प्रसन्नता और संतुष्टि दे सकते हैं लेकिन कालांतर में हमारी और हमारी आने वाली पीढ़ियों की प्रगति को रोक देते हैं।  
ज़रुरत से ज़्यादा आत्मविश्वास और अहंकार - कि हमारा कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता - ऐसी बाधाएं हैं जो किसी के भी भविष्य की प्रगति को सीमित कर देती हैं। ये  न केवल एक व्यक्ति के जीवन को - बल्कि पूरे राष्ट्र, उसके लोगों  - समाज और संस्कृति को प्रभावित करती है ।
एक पीढ़ी द्वारा की गई गलतियाँ और मूर्खताएँ अगली पीढ़ियों को प्रभावित करती हैं। 
अगली पीढ़ियों को इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं और उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

इतिहास केवल पढ़ने के लिए नहीं होता।
अतीत के इतिहास का विश्लेषण करके अपने पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों से सीखने की कोशिश करनी चाहिए - और उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए - न केवल अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी।

व्यक्ति को केवल अपने लिए ही नहीं जीना चाहिए - केवल अपने अल्पकालिक व्यक्तिगत लाभ - प्रसन्नता और संतुष्टि के लिए ही नहीं सोचना चाहिए।
ऐसा तो सभी जानवर - पशु पक्षी इत्यादि भी कर सकते हैं।
केवल मनुष्य के पास ही भविष्य की कल्पना करने और कुछ ऐसा करने की क्षमता है जो आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित कर सकता है
                                                       " राजन सचदेव "

Sunday, June 2, 2024

Direction is more important than speed

Usually, we are so busy looking at our speed that we forget to check the directions -
to see if we are going in the right direction or not. 

It is always more important to focus on the destination rather than speed. Going in the wrong direction at a faster speed will take us much farther away from the destination—at a much faster pace. The faster the speed, the quicker we’ll move away from the destination. It will make returning even more difficult.

Therefore, it is crucial to regularly check if we are on the right track or not. We should always prioritize direction over speed to progress in the right direction and achieve the desired destination.

                                         Rajan Sachdeva 

दिशा गति से अधिक महत्वपूर्ण है

अक़्सर हम अपनी गति को - अपनी स्पीड को देखने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि दिशा की तरफ देखना ही भूल जाते हैं। 
यह देखना भूल जाते हैं कि हम सही दिशा में जा रहे हैं या नहीं। 
गति की बजाय गंतव्य पर ध्यान देना अधिक महत्वपूर्ण होता है। 
तेज गति से गलत दिशा में जाने से हम गंतव्य से उतनी ही तेज़ी से दूर होते चले जाएँगे। 
गति जितनी तेज होगी, उतनी ही तेज़ी से गंतव्य से दूर हो जाएँगे। और फिर वापस लौटना और भी मुश्किल हो जाएगा। 
इसलिए, नियमित रुप से यह देखते रहना चाहिए कि हम सही रास्ते पर हैं या नहीं। 
आगे बढ़ने के लिए और वांछित गंतव्य को प्राप्त करने के लिए हमेशा गति से अधिक सही दिशा को प्राथमिकता देनी चाहिए। 
                                             " राजन सचदेव "

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...