Saturday, October 8, 2016

साया हूँ फ़क़त Saaya Hoon Faqat

दुनिया में हूँ - दुनिया का तलबगार नहीं हूँ 
बाज़ार से गुज़रा हूँ  -  ख़रीदार नहीं हूँ 

ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीं बाक़ी 
हरचंद कि हूँ होश में -  होश्यार नहीं हूँ 

वो गुल हूँ खिज़ा ने जिसे बर्बाद किया है 
उलझूं किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ 

इस ख़ाना-ए-हस्ती से गुज़र जाऊँगा बेलौस 
साया हूँ फ़क़त - नक़्श व दीवार नहीं हूँ       

                   'अकबर अलाहाबादी ' (1846-1921)


Duniya me hoon - Duniya ka Talabgaar nahin hoon
Bazaar se guzraa hoon - Kharidaar nahin hoon

Zinda hoon magar zeest ki lazzat nahin baaki
Harchand ki hoon hosh me - Hoshyaar nahin hoon

Vo gul hoon khiza nay jisay barbaad kiya hai 
Uljhoon kisi daaman say main vo khaar nahin hoon 

Is khaana-e-Hasti se guzar jaaunga be-laus
Saaya hoon faqat naqsh-va-deevaar nahin hoon 

                         (Akbar Allahabadi 1846-1921)
                                     

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