Monday, August 5, 2013

अंदर का प्रकाश


रात के अँधेरे में ड्राइव (drive ) करते हुए अक्सर ऐसा होता है कि अगर कोई अचानक
कार के अंदर की लाइट जला दे तो बाहर ठीक से दिखाई नहीं देता। 
अंदर की लाइट जितनी तेज़ होगी, बाहर उतना ही कम दिखाई देगा।

मन में अध्यात्मिकता का प्रकाश जितना बढ़ेगा, बाहर के संसार का प्रभाव उतना ही कम होता जाएगा। 


यदि मन संसार की दुविधाओं और चिंताओं में उलझा हुआ है, 

अधिकाधिक धन संग्रह तथा मान और यश की प्राप्ति की लालसा अभी बाकी है,
तो ज़ाहिर है कि अभी मन के अंदर ठीक से प्रकाश नहीं हो पाया है ।   



2 comments:

  1. Sadwal <@gmail.com>

    some questions came to mind as I read it. ....... Kavita
    …… क्या कारण है कि मन के अंदर ठीक से प्रकाश नहीं हो पाता ?? कहीं यह मन ही नहीं जो स्वयं को पूर्णतया प्रकाशित होने से रोकता है ?
    … प्रकाश चाहे मध्यम हो या इतना क्षीण हो कि सामने पड़ी वस्तुओं का मात्र आभास ही हो रहा हो ,तब भी व्यक्ति ठोकर खाने से बच जाता है यदि उसकी कोशिश होती है कि वह उनसे बचे और जिस वस्तु को ढूंढ रहा है वह मिल जाए।
    ……. क्योंकि मन के भीतर ठीक से प्रकाश नहीं हो पाया है ,तभी तो ज़रुरत पड़ती है सत्संग की , हरि चर्चा की ,और मनन की।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके प्रश्न के लिए धन्यवाद । कोई ज्ञानी ही ऐसे ज्ञान पूर्ण और महत्वपूर्ण प्रश्न करता है और जिसमे जवाब भी शामिल होता है।
      क्योंकि तीसरी लाइन में आपने स्वयं ही अपने पहले प्रश्न का उत्तर भी दे ही दिया है। अब रही बात . . .

      " …… प्रकाश चाहे मध्यम हो या इतना क्षीण हो कि सामने पड़ी वस्तुओं का मात्र आभास ही हो रहा हो, तब भी व्यक्ति ठोकर खाने से बच जाता है यदि
      उसकी कोशिश होती है कि वह उनसे बचे और जिस वस्तु को ढूंढ रहा है वह मिल जाए। .......... "

      इसमें कोई शंका नहीं कि मन के अंदर मध्यम या थोडा सा भी प्रकाश हो तो इंसान ठोकर से बच जाता है।
      इसीलिए एक ज्ञानी, भक्त और सत्संगी बहुत विकल और परेशान नहीं होता और हो भी तो जल्दी संभल जाता है।
      और कोशिश करता है कि जिस वस्तु को ढूंढ रहा है वह मिल जाए।
      लेकिन प्रश्न ये है कि वो क्या ढूंढ रहा है और कहाँ ढूंढ रहा है।
      स्वाभाविक रूप से हर इंसान सुख और शान्ति चाहता, और ढूंढता है।
      लेकिन कहाँ? अंदर या बाहर?
      यदि अंदर प्रकाश कम हो और बाहर ज्यादा, तो हम बाहर ही ढूंढते रह जाएंगे।
      जहां ढूँढना हो वहां अधिक प्रकाश चाहिए ।

      और सत्य तो यही है कि ……

      सभ किछु घर महि बाहरि नाही ॥
      बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही ॥
      गुर परसादी जिनी अंतरि पाइआ सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ ॥१॥
      गुरु अर्जुन देव जी (महला 5 page # 102 )

      सुख और शान्ति बाहर से नहीं, अंदर से प्राप्त होती है।
      इसलिए अंदर के प्रकाश को पूर्ण रूप से प्रज्वलित करना जरूरी है

      Delete

Naam letay hain vo mera (They mention my name with.... )

Naam letay hain vo mera kyon dushnaam say   (Disdain) Miltay hain jin say hamesha hum ikraam say    (Respectfully) Beqaraari me na aayi ne...