'सहजो' नीचे कारणे सब कोइ पूजे पांव
" सहजो बाई "
भक्त कवित्री सहजो बाई अपने गहरे आध्यात्मिक विचारों के लिए जानी जाती हैं।
इस दोहे के माध्यम से वो हमारा ध्यान इस ओर दिलाना चाहती हैं कि हमारे शरीर के ऊपरी अंग—आँख, कान, मुख, और नासिका— बेशक ऊँचाई पर स्थित होते हैं, लेकिन फिर भी पूजा इनकी नहीं बल्कि पैरों की होती है - पाँवों को ही अधिक पूजनीय समझा जाता है।
क्योंकि पाँव हमें धरती से जोड़ते हैं - धरती से जुड़े रह कर हमें संसार में यात्रा करने का आधार देते हैं। इसलिए जब कोई किसी का सम्मान करता है, तो वह उसके चरणों में सिर झुकाता है। किसी से कुछ लेने के लिए - कुछ सीखने या प्राप्त करने के लिए हम देने वाले के चरणों में झुकते हैं। शिक्षा देने वाले शिक्षक अथवा गुरु के चरणों में या उनसे कुछ नीचे बैठते हैं। यह विनम्रता और सेवा का प्रतीक है।
यहां सहजो बाई यह संदेश दे रही हैं कि विनम्रता और सेवा ही सच्ची महानता का मापदंड हैं। केवल ऊँचे स्थान पर स्थित होने मात्र से ही कोई पूजनीय नहीं हो जाता, बल्कि सच्ची श्रद्धा और सम्मान उन्हें मिलता है जो दूसरों के लिए उपयोगी होते हैं।
" राजन सचदेव "