आजीवन विद्यार्थी
फलाकांक्षा जब से त्यागी, हर पल, हर क्षण, जीना सीखा।
गंतव्य लालसा जब से छोड़ी, आनंद सफ़र का लेना सीखा।
मद की मदिरा जब से त्यागी, सहज भाव से जीना सीखा।
राग द्वेष को दफ़ना कर के, प्रेम पुजारी बनना सीखा।
कर संहार मृत्यु का मैंने, जीवटता से जीना सीखा।
कर संहार मृत्यु का मैं, जीवंत हुआ और जीना सीखा।
मोत मर गई मेरी जिस दिन, उस दिन मैंने जीना सीखा।
मोत मर गई मेरी जिस दिन, उस दिन मैंने जीना सीखा।
"डॉक्टर सतीश व्यास"
Written by “Dr. Satish Vyas Indori”
(Michigan
USA)
No comments:
Post a Comment