हम आमतौर पर शिकायत करते हैं कि हमारे पास सुमिरन और ध्यान करने के लिए सही माहौल - सही वातावरण नहीं है।
और इसके लिए हम हमेशा दूसरों को ही दोष देते हैं।
हम सोचते हैं कि जब हमारे पास ऐसा वातावरण होगा जहां किसी प्रकार की बाधा और विघ्न नहीं होगा तभी हम शांतिपूर्वक सुमिरन और ध्यान कर पाएंगे।
लेकिन, क्या आपने कभी भगवान शिव के चित्र को देखा है?
वह सांपों और भूतों से घिरे हुए हैं - उनके गले में साँप लिपटा हुआ है।
उनके आस पास धूल और राख से ढके लोग और डरावने दिखने वाले भूत प्रेत हैं।
वह स्वयं भी राख में लिपटे हैं। उनके तन पर न तो कोई कपड़े हैं - न ही कोई अन्य आराम के साधन हैं।
लेकिन फिर भी - एक पत्थर पर भी वह इतनी शांति से ध्यान की मुद्रा में बैठे हैं और अपने आस पास के परिवेश अथवा वातावरण से विचलित नहीं होते।
वह अपने आप में ही इतने संलग्न हैं कि उन के गले में लिपटा हुआ साँप भी उन्हें विचलित नहीं कर सकता। वो इतने मस्त हैं कि मानो वह अपने आस-पास की हर चीज से पूरी तरह अनजान हों।
और मैं सोच रहा हूँ - मेरे मन में एक विचार उठ रहा है कि -
क्या वास्तव में वह अपने परिवेश और आस पास के वातावरण से अनजान हैं?
उनके आसपास जो कुछ भी हो रहा है - क्या उसकी उन्हें कोई खबर नहीं है?
या फिर यह सब जान-बूझकर किया जा रहा है? किसी विशेष मंतव्य से - किसी ख़ास इरादे से।
शायद ये चित्र हमें ये समझा रहा है कि सुमिरन या ध्यान कहीं भी किया जा सकता है - किसी भी परिवेश - किसी भी वातावरण में। आस पास के माहौल की परवाह लिए बिना।
अगर वह बिना कपड़ों के - राख से ढंके हुए तन में - सांपों और भूतों के बीच घिरे हुए भी एक पत्थर पर बैठकर ध्यान कर सकते हैं - तो हम अपने ही घर में क्यों नहीं कर सकते?
हमारे पास तो आधुनिक जीवन की सभी सुख-सुविधाऐं उपलब्ध हैं - आरामदायक घर हैं - सुंदर और बड़े बड़े धार्मिक स्थान और सत्संग-भवन हैं जहां हम सब बैठकर ध्यान पूर्वक सुमिरन और सत्संग कर सकते हैं।
लेकिन फिर भी हम विचलित रहते हैं - व्याकुल और अशांत रहते हैं।
अगर किसी कारण से हम सुमिरन नहीं कर पाते - या हमारा ध्यान भटकता है तो हम उसके लिए अन्य लोगों को या वातावरण को दोष दे देते हैं।
शायद हमें भगवान शिव के चित्र को दोबारा - बड़े ध्यान से देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि वह हमें क्या समझा रहे हैं।
अगर दृढ़ संकल्प के साथ अभ्यास किया जाए तो एक दिन उस अवस्था में - उस स्टेज तक पहुंचा जा सकता है जहां किसी भी माहौल - किसी भी वातावरण में ध्यान और सुमिरन किया जा सकता है।
" राजन सचदेव "