ये सदी हमको कहाँ ले जाएगी
तीरगी हमको कहाँ ले जाएगी
पूछती हैं मछलियों से मछलियां
ये नदी हमको कहाँ ले जाएगी
जुगनुओं के जिस्म से निकली हुई
रोशनी हमको कहाँ ले जाएगी
" सुरेंद्र शास्त्री "
तीरगी = अंधेरा
पत्थर में इक कमी है - वो पिघलता नहीं है पर इक ख़ूबी भी है - वो बदलता नहीं है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ न पिघलना...
Naa samjhe to yahi bhatkayegi!
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