Wednesday, April 5, 2023

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन - कठोपनिषद

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्‌ ॥
                      (कठोपनिषद 1:2:23)

यह आत्मा प्रवचनों द्वारा लभ्य नहीं है, न मेधाशक्ति से, न बहुत शास्त्रों के श्रवण से ही यह लभ्य है। 
यह तो उसी के द्वारा लभ्य है, - उसे ही प्राप्त होता है जो केवल इसका ही वरण करता है - केवल इसे ही चुनता है - 
उसी के प्रति यह आत्मा स्वयं को अनावृत करता है - उसे ही आत्मन के सही स्वरुप का अनुभव होता है 
 
अर्थात आत्मा का ज्ञान एवं आत्मा के साथ एकीकरण की अवस्था न तो प्रवचनों से - न बुद्धि से और न ही बहुत सुनने से प्राप्त की जा सकती है। 
जिसे यह आत्मा चुनती है - वही उसे प्राप्त कर सकता है। 

पहली बात तो यह याद रखने की है कि ' हम ' शरीर नहीं - आत्मा हैं। 
जिसे आत्मा चुनती है - अर्थात हम कौन सा लक्ष्य चुनते हैं - हमारा झुकाव जगत की ओर है या स्वयं को जानने की ओर। 
जिसे स्वयं को जानने की तीव्र उत्कंठा है - उसे ही आत्मा का साक्षात्कार हो सकता है - केवल वही आत्मा के साथ एकीकार हो सकता है। 
यह केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब आत्मा अर्थात 'हम ' स्वयं ऐसा करने का विकल्प चुनते हैं। 
गहरी इच्छा,अनुशासन और अभ्यास से ही आत्मा का अनुभव होता है।
छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार --  तीव्र इच्छाएं और उत्कंठाएँ ही हमारे व्यक्तित्व और भविष्य का निर्माण करती हैं -  तीव्र इच्छा से ही आत्म अथवा स्वयं का ज्ञान हो सकता है। 
भगवद गीता में इसे मुमुक्षु का नाम दिया है। 
दूसरे शब्दों में - स्वयं इस मार्ग पर चल कर ही इस अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। 
यदि हम वास्तव में ही आंतरिक आत्मा को जानना और उसके साथ एक होना चाहते हैं - तो सबसे पहले उसके लिए गहरी इच्छा - गहरी लालसा होनी चाहिए।

किसी भी बात को समझने के लिए - और कुछ करने में सक्षम होने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है।
लेकिन उसे  महसूस करने और उसे जीवन का एक हिस्सा बनाने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है।
और अनुभव केवल पढ़ने, सुनने - या केवल मार्ग के नक़्शे को जानने से नहीं होता।
शास्त्रों को पढ़ने और संतों महात्माओं के प्रवचन सुनने से हमें सही दिशा का ज्ञान हो सकता है - वो हमें सही मार्ग दिखा सकते हैं 
वे हमें सही रास्ते पर तो ले जा सकते हैं - लेकिन अनुभव तो केवल उस रास्ते पर चलकर ही प्राप्त किया जा सकता है - सिर्फ  जानने से नहीं।
ज्ञान और ध्यान एवं सुमिरन के माध्यम से ही स्वयं के साथ एक होने की स्थिति को प्राप्त कर के परम आनंद का अनुभव किया जा सकता है - केवल पढ़ने, कहने या सुनने से नहीं। 
                                                ' राजन सचदेव " 

न अयं आत्मा (न यह आत्मा)   प्रवचनेन (प्रवचनों द्वारा)   लभ्यः  (प्राप्त होता है - मिलता है)
न मेधया (न बुद्धि और अक़्ल से)   न बहुना श्रुतेन  (न ही बहुत सुनने से) 
यम  (जिसे)  एशः  (यह स्वयं)   वृणुते  ( वरण करता है - चुनता है) 
तेन   (उसके द्वारा)  लभ्यः  (प्राप्त होता है)
तस्य  (उसे)  एष आत्मा (यह आत्मा अथवा स्व ) स्वाम् तनूम्  (स्वयं को - अपने आप को)  विवृणुते (प्रकट करता है)

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Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...