Monday, April 12, 2021

जो ग़रीब सों हित करें - धनि ‘रहीम’ ते लोग

         जो ग़रीब सों हित करें  -धनि ‘रहीम’ ते लोग।
         कहां सुदामा बापुरो - कृष्ण मिताई जोग॥


शब्दार्थ :
रहीम कहते हैं कि वह धन्य हैं जो ग़रीबों से भी प्रीति रखते हैं।
उन्हें याद रखते हैं और उनसे हित अर्थात प्रीति निभाते हैं।
कहाँ ग़रीब सुदामा और कहाँ राजा कृष्ण। 
उनमे क्या समानता थी? 
भला बेचारा सुदामा कहीं कृष्ण की मित्रता के योग्य था?

भावार्थ :
अक़्सर लोग धन एवं शक्ति और प्रभुता पाने के बाद केवल अमीर और प्रभावशाली लोगों से सम्बन्ध रखना चाहते हैं और अपने पुराने ग़रीब मित्रों - सम्बन्धियों को निम्न दृष्टि से देखने लगते हैं - उनके साथ संबंध रखना अपमान समझते हैं।
लेकिन वह लोग धन्य हैं जो धन और प्रभुता पाने के बाद भी नहीं बदलते।

कृष्ण और सुदामा में क्या समानता थी?
कृष्ण तो अब राजा बन चुके थे लेकिन सुदामा दरिद्र ही रह गए।
फिर भी कृष्ण अपने मित्र सुदामा को नहीं भूले और न ही उसके प्रति उनका व्यवहार बदला।
राजा बन जाने के बाद भी उन्हों ने अपनी पुरानी मित्रता और प्रेम को उसी तरह से निभाया।
सुदामा को ग़रीब और असहाय समझ कर कृष्ण ने उस पर दया नहीं की - दरबान के द्वारा उसे बाहर की डयोढ़ी में बैठ कर प्रतीक्षा करने के लिए नहीं कहा। बल्कि स्वयं उन्हें लेने के लिए नंगे पाँव भाग कर मुख्य द्वार पर आए। अंदर ला कर उन्हें अपने आसन पर बिठाया और उनके मिट्टी से सने पाँव स्वयं अपने हाथों से धोए।

यह होती है महानता। 
इसे कहते हैं बड़प्पन।

विचारणीय है कि कृष्ण की महानता इस बात से नहीं है कि वह कोई महाराजा थे ।
उनकी महानता इस बात में है कि महाराजा होते हुए भी बिना किसी लज्जा और शर्म से सबके सामने उन्होंने अपने ग़रीब मित्र को गले से लगाया - उसे ऊँचे सिंहासन पर बिठाया और किसी भी तरह से सुदामा को अपने बड़प्पन अथवा उसके छोटेपन का एहसास नहीं होने दिया।
धनादि से उसकी सहायता की लेकिन किसी भी तरह से कोई एहसान नहीं जताया।

कृष्ण की महानता इस बात में भी नहीं है कि वह जगत-गुरु थे या उनके लाखों अनुयायी थे।
बल्कि इस बात में है कि हालाँकि गीता-उपदेश के बाद अर्जुन उनका शिष्य बन गया था, इसके बावजूद भी कृष्ण उस के सारथी बने।
कृष्ण ने अपने शिष्य का सारथी बनने में भी अपना अपमान नहीं समझा।

जहां एक ओर कृष्ण ने सांख्य और योग की गहन विचारधाराओं - तथा ज्ञान एवं भक्ति योग को गीता के माध्यम से समझाया तो वहीं स्वयं अपने कर्म से संसार को कर्म योग की प्रेरणा भी दी।
                               ' राजन सचदेव '

5 comments:

  1. Very nice thanks Uncle ji.Very Well written ji

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  2. On reading these types of great explanations by you, I get enlightened and it soothes my inside — my mind and soul bows on your lotus feet.
    चरण वन्दना । 👏👏

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  3. Very Nice ji...thanks for sharing
    Very inspiring words !
    Anil Gambhir 🙏

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  4. अति सुन्दर

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