Wednesday, February 8, 2023

तेरा साईं तुझ में बसै

         ज्यों तिल माहिं तेल है ज्यों चकमक महिं आग 
         तेरा साईं तुझ में बसै - जाग सके तौ जाग 
                                              " कबीर जी "

जैसे तिल के बीज में तेल छुपा है 
जैसे चकमक पत्थर (मैगनेट) में छुपी है आग की  चिंगारी 
वैसे ही साईं अथवा मालिक का निवास भी तुम्हारे अंदर ही है 
प्रभु परमात्मा तुम्हारे अंदर ही बसा हुआ है 
तुम परमात्मा का ही अंश हो 
जागो -  इसे देखो और समझने का यत्न करो। 

और केवल तुम्हारे अंदर ही नहीं -
          सकल वनस्पति में बैसंतर सकल दूध में घीआ 
          तैसे ही रव रहयो निरंतर घट घट माधो जीआ 

जैसे सभी पेड़ पौधों में - सभी लकड़ियों में आग छुपी है जो ज़रा सी चिंगारी लगने से प्रकट हो जाती है। 
जैसे सकल दूध में मख्खन अथवा घी भी हमेशा विद्यमान होता है और बिलोने से प्रकट हो जाता है। 
इसी तरह हरि परमात्मा भी घट घट में रव रहा है - अर्थात केवल किसी एक घट में नहीं बल्कि हर प्राणी के अंदर बस रहा है। 
       "हरि व्यापक सर्वत्र समाना  
        प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना "
                                                    (तुलसीदास)

जैसे लकड़ी में आग को प्रकट करने के लिए चिंगारी की ज़रुरत  है 
जैसे मक्खन के लिए दूध को बिलोना पड़ता है 
वैसे ही प्रभु को देखने के लिए प्रेम की ज़रुरत है। 
श्रद्धा प्रेम और भक्ति एवं ज्ञान के ज़रिये से न केवल अपने अंदर बल्कि हर इंसान में प्रभु का रुप स्पष्ट देखाई देने लगता है।  
                                              "  राजन सचदेव " 

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सुख मांगने से नहीं मिलता Happiness doesn't come by asking

सुख तो सुबह की तरह होता है  मांगने से नहीं --  जागने पर मिलता है     ~~~~~~~~~~~~~~~ Happiness is like the morning  It comes by awakening --...