Tuesday, February 21, 2023

क्या हर व्यक्ति और वस्तु का अपना मूल्य होता है?

एक बार की बात है -  
मैं जम्मू में शालीमार और पहाड़ी मोहल्ला के कोने पर सिटी बस का इंतजार कर रहा था।
स्टॉप के बगल में ही एक छोटी सी चाय की दुकान थी।
उस समय दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था।
दूकान का मालिक एक पुरानी किताब के पन्ने फाड़ कर उन से पेपर बैग बना रहा था।
फर्श पर कुछ पुरानी किताबों, पत्रिकाओं और अखबारों का ढेर भी पड़ा था। 
अचानक एक किताब पर मेरी नज़र पड़ी। 
वो किताब थी ग़ालिब का दीवान  - उर्दू में मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी का संग्रह।

मैंने पूछा - ये किताब बेचोगे? 
क्या कीमत लोगे इसकी?"
उसने किताब उठा कर देखा कि उस में कितने पेज थे। 
पन्नों की गिनती की - कि उस से कितने पेपर बैग बनाए जा सकते हैं। 
हिसाब लगाने के बाद उसने कहा: "पचास पैसे?
मैंने उसे दो रुपये दिए और वह किताब खरीद ली।

कहने की ज़रुरत नहीं कि इस सौदे से हम दोनों को ही बहुत ख़ुशी महसूस हुई। 
मुझे ये ख़ुशी थी कि वो किताब मुझे इतने सस्ते में मिल गई। 
और वह इसलिए खुश था कि उसे उम्मीद से ज़्यादा कीमत मिल गई।

उस अनपढ़ आदमी के लिए - बेशक कागज का तो कुछ मूल्य था - लेकिन उस पर जो छपा था, उसकी कोई कीमत नहीं थी। 
दूसरी ओर, कागज या उसकी कुआलिटी मेरे लिए ज्यादा मायने नहीं रखती थी - 
लेकिन उस पर जो छपा था वह मेरे लिए बहुत मायने रखता था।

इसी प्रकार दीमक के लिए एक कागज का अस्तित्व उस पर छपे साहित्य के आस्तित्व से सर्वथा भिन्न होता है - बिलकुल अलग होता है।  
कागज़ को खाने वाली उस दीमक के लिए साहित्य तो बिल्कुल अस्तित्वहीन है।
जबकि कागज उसका भोजन है - उसके जीने का साधन - उसके जीवन का स्रोत है।

दूसरी ओर एक विद्यार्थी और जिज्ञासु व्यक्ति के लिए कागज़ से कहीं ज़्यादा उस पर छपे साहित्य का मूल्य होता है।
वास्तव में कीमत चीज़ों की नहीं होती।  
उपयोगकर्ता उन्हें अपनी ज़रुरत और इच्छा के अनुसार उनका मूल्य डालते हैं।

यही बात लोगों पर भी लागू होती है।
एक साधारण व्यक्ति जो अपने परिवार के लिए एकमात्र प्रदाता हो  - 
अकेला ही कमाने वाला - भोजन और हर सुविधा प्रदान करने वाला हो - तो घर में तो उसका बहुत सम्मान होता है 
उसकी पत्नी और बच्चे तो उसका बहुत आदर सम्मान करते हैं  
लेकिन घर के बाहर उसे न कोई जानता है, न मानता है। कोई उस पर ध्यान भी नहीं देता। 
क्योंकि हम अपनी ज़रुरतों और अपेक्षाओं के अनुसार ही लोगों को महत्व देते हैं।
हम केवल उन लोगों की सराहना, आदर और सम्मान करते हैं जिनसे हमें कुछ मिलने की - या किसी प्रकार का कोई फायदा होने की उम्मीद होती है। 
और कुछ दूसरे लोग - कोई अन्य व्यक्ति चाहे कितने ही प्रतिभाशाली और बुद्धिमान क्यों न हों - अगर वो हमें अपने लिए लाभदायक या सार्थक नहीं लगते तो हम उनकी उपेक्षा कर देते हैं।

हम अपनी ज़रुरतों और अपेक्षाओं के अनुसार ही हर वस्तु और हर इंसान का मूल्य आंकते हैं। 
अपनी अवधारणाओं के अनुसार किसी की कीमत कम और किसी की ज़्यादा तय कर लेते हैं।  

लेकिन अगर कोई स्वार्थ न हो - किसी से किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा न हो 
तो हर इंसान हमें एक जैसा और एक समान दिखाई देने लगेगा।
                                        " राजन सचदेव "

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Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...