Sunday, July 16, 2023

एक महल था राजा का इक राज-कुमारी होती थी

एक महल था राजा का इक राज-कुमारी होती थी
उस राजा को अपनी प्रजा जान से प्यारी होती थी

बाबा कहते थे ये खंडहर सीता-राम का मंदिर था
उस मंदिर की एक पुजारन राम-दुलारी होती थी

पुष्पा और राधा भी मेरी बहनों जैसी होती थीं
मंगल-दास और मेरा बेटा - गहरी यारी होती थी 

एक दिए की लौ में बाबा 'मीर' और 'ग़ालिब' पढ़ते थे
एक अँगेठी होती थी और इक अलमारी होती थी

शाम ढले इक लॉन में सारे बैठ के चाय पीते थे
मेज़ हमारा घर का था कुर्सी सरकारी होती थी

एक कुआँ मीठे पानी का और इक बूढ़ा बरगद था
एक मोहब्बत का गहवारा बस्ती सारी होती थी

मीठे गीतों की वो रिस्ना मीठी धुन और मीठे बोल
पूरन-माशी पर आँगन में शब-बेदारी होती थी

अब जो मुल्ला वाइ'ज़ करे तो ख़ौफ़ सा आने लगता है
मोहन-दास से ना'तें सुन कर रिक़्क़त तारी होती थी

रिश्तों का एहसास लहू के अंदर रचता-बस्ता था
कब ऐसी नफ़सा-नफ़सी और मारा-मारी होती थी?

                             " लेखक:  जानाँ मलिक "

बेदारी - जागृत  
शब-बेदारी = जागती हुई रात 
वाइ'ज़   =  धर्मोपदेश, प्रचार, धार्मिक या नैतिक उपदेश, प्रवचन देने वाला
ख़ौफ़   =   डर 
ना'तें    =  पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद की तारीफ़ में गाए जाने वाले गीत praises of Prophet Mohammad
रिक़्क़त  =  ऑंखें भर आना - दिल भर आना - आँखों में आंसू आना 
रिक़्क़त तारी होती थी  =  दिल भर आता था - आँखों में आंसू आ जाते थे 
नफ़सा-नफ़सी   =  आपा-धापी, सब को अपनी अपनी पड़ना - सिर्फ अपने हितों और आवश्यक्ताओं के बारे में सोचना, केवल अपनी फ़िक्र करना 

1 comment:

Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...