Tuesday, November 24, 2020

पात झरंता यूँ कहै - सुन तरुवर बनराय

 पतझड़ का मौसम है।

घर का आंगन वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों से भरा हुआ है।
मैं अपने कमरे में बैठे हुए खिड़की में से पेड़ों से गिरते हुए पत्तों को देख रहा हूं।
जब कुछ पत्ते जमीन पर गिरने से पहले कुछ सेकंड के लिए हवा में तैरते हुए दिखाई दिए - तो मुझे संत कबीर जी के दो दोहे याद आ गए जो हमें पाँचवीं या छठी कक्षा में हिंदी की क्लास में पढ़ाए जाते थे।
                             पात झरंता यूँ कहै  -  सुन तरुवर बनराय 
                             अबके बिछुरे नाहीं मिलें - दूर परैंगे जाय 

झड़ता हुआ - गिरता हुआ पत्ता दुखी मन से पेड़ से कहता है:
अब बिछुड़ने के बाद हम फिर कभी नहीं मिल सकेंगे - क्योंकि मैं कहीं बहुत दूर जा गिरुँगा। 
अब फिर से मिलना असंभव होगा 

पेड़ ने जवाब देते हुए कहा:
                        तरुवर पात सों यों कहै, सुनो पात एक बात
                        या घर याही रीति है, एक आवत एक जात

 वृक्ष पत्ते से कहता है - हे पत्ते - मेरी बात ध्यान से सुनो।
एक जाता है, और दूसरा आता है - यही इस संसार का नियम है।

पतझड़ के दौरान लगभग सभी पेड़ों के पत्ते झाड़ जाते हैं।
सर्दियों के मौसम में सभी पेड़ नग्न - पात विहीन खड़े रहते हैं।
लेकिन सर्दियों के बाद, वसंत रितु के आते ही उन पर नए पत्ते उगना शुरु हो जाएंगे - और जल्द ही, वे फिर से हरे पत्तों से भर जाएंगे।
यह चक्र चलता रहता है।
यही प्रकृति का नियम है।

पेड़ के लिए पत्तों का झड़ना - गिरना शायद ज्यादा मायने नहीं रखता।
वह विभिन्न ऋतु-चक्रों में भी जीवित रहता है।

इसी प्रकार - कितने ही लोग प्रति दिन इस दुनिया से चले जाते हैं - और कितने ही नए जन्म लेते हैं।
जो चले जाते हैं, हम उन्हें फिर कभी नहीं देख पाते।
लेकिन जहां तक संसार का सवाल है, यह बात ज़्यादा मायने नहीं रखती। किसी के आने जाने से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। 
पेड़ की तरह, संसार भी हमेशा की तरह चलता रहता है।
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तभी एक और विचार मन में आता है।

ऐसा लगता है कि पेड़ प्रभावित नहीं होता है - यह पत्ते ही हैं जो समाप्त हो जाते हैं।
एक बार जब यह पेड़ से गिरते हैं तो सूख जाते हैं - मर जाते हैं और हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं।
यह फिर कभी पेड़ का हिस्सा नहीं बन सकते।

लेकिन क्या यह सच है?
सामान्य अवलोकन और विज्ञान के अनुसार  - नहीं।
गिरी हुई मृत पत्तियाँ अंततः खाद में बदल जाती हैं।
वे नए या मौजूदा पौधों के लिए भोजन बन जाते हैं - और इस प्रकार वे फिर से पेड़ों का हिस्सा बन जाते हैं।

 विज्ञान कहता है कि कोई भी वस्तु पूर्णतयः समाप्त नहीं होती। केवल उसका रुप बदल जाता है।  

इसी तरह, चेतना भी कभी नहीं मरती - समाप्त नहीं होती।
यह किसी अलग रुप में - किसी अलग आकार - किसी दूसरे शरीर में फिर से संसार में प्रकट हो जाती है।

यद्यपि मुझे खिड़की के माध्यम से एक अंधेरा, बादलों से ढंका एक उदास सा चित्र दिखाई दे रहा है - 
लेकिन मैं जानता हूँ कि कुछ ही महीनों में, वसंत रितु के आते ही सब कुछ फिर से ताजा, हरा भरा और प्रफुल्लित हो जाएगा।
                                                ' राजन सचदेव '

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Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...