Monday, August 10, 2020

नकारात्मकता

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम सभी के आसपास एवं दुनिया के हर कोने में नकारात्मकता फैली हुई है।
अधिकांश लोग दूसरों में सकारात्मकता और अच्छाई देखने में सक्षम नहीं हैं।
ऐसे समय में हमें आश्चर्य होता है कि क्या हमें अब भी दयालु और उदार बने रहने की कोशिश करते रहना चाहिए? जबकि दूसरे नहीं हैं? 
कभी कभी हमें ऐसा भी लगता है कि जब सभी ओर ही नकारात्मकता फैली हुई है तो सिर्फ हमारे सकारात्मक, उदार और विशाल बने रहने से भी क्या फायदा?

लेकिन सवाल यह है:
क्या हम चाहते हैं कि हमारी भक्ति और अच्छाई भगवान देखें या सांसारिक लोग?
तो सवाल यह नहीं है कि "हमें कब तक प्रयास करते रहना चाहिए?"
बल्कि सवाल यह है कि हम क्या कर रहे हैं और किसलिए ?
हमें स्वयं अपने आप से ही पूछना चाहिए कि:
क्या हम अपने मन की शान्ति के लिए - एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए धार्मिकता और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहे हैं - या दूसरों को अपने गुण दिखाने के लिए ? इसलिए कि लोग हमारीअच्छाई और सकारात्मक गुण देख कर हमारी प्रशंसा करें?

मुझे याद है कि शहंशाह जी कहा करते थे कि यह दुनिया संतों के जीवनकाल में संतों को कभी नहीं पहचानती। 
केवल मुट्ठी भर लोग ही संतों को संत के रुप में देखते हैं। ज्यादातर लोगों को इसका एहसास उनके चले जाने के बाद ही होता है।

यदि हम दूसरों को दिखाने के लिए अच्छा बनने का प्रयास कर रहे हैं तो इस दुनिया में ज्यादातर लोग इसे कभी नहीं देख पाएंगे  - चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें।
यदि यह स्वयं के लिए है - यदि हम वास्तव में अच्छा बनने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो तब तक प्रयास करते रहें जब तक यह हमारे स्वभाव का अंग नहीं बन जाता।
क्योंकि एक बार जब सकारात्मकता और अच्छाई हमारी प्रकृति बन जाती है - हमारा स्वभाव बन जाता है, तो किसी का बुरा करना तो अलग, हम किसी के लिए बुरा सोच भी नहीं सकते। कोई नकारात्मक भाव मन में पैदा ही नहीं होता। 
तब हमें शुभ बोलने और शुभ करने के लिए कोशिश नहीं करनी पड़ेगी, बल्कि स्वाभाविक रुप में - स्वयंमेव ही ऐसा होने लगेगा। 

लगता है कि ऐसा होना कठिन है। 
लेकिन कभी किसी ने यह नहीं कहा कि आध्यात्मिकता का मार्ग सरल है।
शास्त्रों में आध्यात्मिक मार्ग की तुलना एक तेज ब्लेड या तलवार की धार पर चलने से की जाती है।
लेकिन जब दयालुता और विशालता के गुण हमारी प्रकृति का - हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाते हैं -
जब हमें दयालु और उदार बनने की कोशिश नहीं करनी पड़े - जब यह स्वयंमेव ही - स्वाभाविक रुप में होने लगे तो यह आध्यात्मिकता का मार्ग बहुत आसान और सरल हो जाता है
                                     ' राजन सचदेव '

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Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...