Saturday, September 30, 2017

विजय-दशमी

विजय-दशमी पर .....  हर साल ..... 

हर शहर में  रावण का पुतला बड़ी धूम धाम से जलाया जाता है 

जितना ऊंचा रावण होगा उतना ही दर्शनीय होगा 

और जलते हुए पटाखों का शोर जितना अधिक होगा 
                
दर्शकों को उतना ही अधिक आनंद मिलेगा 

         लेकिन भीड़ से घिरा, जलता हुआ रावण 

        पूछता है सबसे  बस एक सवाल: -

                         ए मुझे जलाने वालो........ 

                                                               तुम में से राम कौन है ?

 अचानक मन में  एक विचार  आया ..

       कि रावण को जलाने से पहले हम स्वयं ही तो उसे बनाते हैं 

     और फिर सब के सामने खड़ा कर के धूम धाम से उसे जलाने का नाटक भी करते हैं । 

     अगले साल फिर एक नया  रावण बना लेते हैं और फिर उसे जलाते हैं 

                            हर साल ये सिलसिला ज़ारी रहता है 

अगर हम बार बार अपने मन अथवा जीवन में  नए नए रावण बनाना छोड़ दें 

                           तो बार बार उन्हें जलाने की ज़रूरत भी नहीं  पड़ेगी 

आइये ....... अब की विजय दशमी - दशहरे पर  ये संकल्प करें :

कि  इस बार अपने अंदर के रावण को मार कर हमेशा के लिए जला दें 
                                                  
                       और फिर कभी अपने मन में कोई नया रावण पैदा न होने दें 

                                                              ' राजन सचदेव '


4 comments:

सुख मांगने से नहीं मिलता Happiness doesn't come by asking

सुख तो सुबह की तरह होता है  मांगने से नहीं --  जागने पर मिलता है     ~~~~~~~~~~~~~~~ Happiness is like the morning  It comes by awakening --...