Saturday, May 24, 2025

वाणी आंतरिक चरित्र का सच्चा प्रकटीकरण है

       'रहिमन' दोनों एक से जब लग बोलत नाहिं
          जान पड़त हैं काक पिक बसंत ऋतु के माहिं

                                (दोहा: अब्दुल रहीम )

काक = कौवा
पिक = कोयल

रहीम कहते हैं कि जब तक कौआ और कोयल बोलते नहीं हैं, तब तक वे दोनों एक जैसे ही दिखते हैं (
दोनों का ही रंग काला है) 
लेकिन जब वसंत ऋतु आती है और ये बोलते हैं, तब पता चलता है कि कौन कोयल है और कौन कौवा।

इसी तरह का एक श्लोक प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में भी मिलता है:
                 काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: कोभेद: पिककाकयो:।
                 वसन्तकाले सम्प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:।।

अर्थात कौआ भी काला है और कोयल भी काली है। 
क्योंकि दोनों ही काले हैं - दोनों का रंग एक जैसा ही है इसलिए कई बार इनमें भेद करना कठिन हो जाता है पर वसन्त ऋतु के आते ही जब कोयल मधुर गीत गाती है और कौआ काँय काँय करता है तो झट ही दोनों की वास्तविकता का पता चल जाता है।

16वीं शताब्दी के कवि रहीम का यह दोहा और संस्कृत का यह कालातीत श्लोक - दोनों ही व्यक्ति के वास्तविक चरित्र को प्रकट करने में वाणी और अभिव्यक्ति के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।

यह दोनों दोहे सद्वाणी, विवेक और आत्मपहचान की ओर संकेत करते हैं कि इंसान की पहचान उसके रंग-रुप या बाहरी दिखावे से नहीं होती, बल्कि उसकी वाणी (बोलचाल) और व्यवहार से होती है। 
जैसे कोयल की मधुर वाणी और कौवे की कर्कश ध्वनि उन्हें एक दूसरे से अलग करती है, वैसे ही व्यक्ति की असली पहचान उसकी वाणी - बोलचाल, भाषा और आचरण से होती है। 
वाणी आंतरिक चरित्र का सच्चा प्रकटीकरण है।
आप क्या कहते हैं और किस ढंग से कहते हैं - आपकी भाषा - आपके शब्द और अभिव्यक्ति - अर्थात बात कहने का लहज़ा आपके आंतरिक स्वभाव को परिभाषित करता है।
जिस इन्सान की वाणी और व्यवहार में विनम्रता होती है उसके प्रति लोगों के मन में स्वयंमेव ही प्रेम और श्रद्धा का भाव उत्पन्न होने लगता है। 
                     " राजन सचदेव "

3 comments:

  1. Yahi prashn mai apne aap se karu to mera aatm manthan muje realize kara dega k mai kak hu ya pik

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  2. nicely explained.🙏

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