Thursday, March 7, 2024

फ़ोन का बिल

एक सज्जन शाम को घर आये तो देखा कि उनकी टेबल पर इस महीने का फ़ोन का बिल पड़ा था। 
उठा कर देखा तो बहुत हैरान हुए। 
इस महीने का बिल पिछले महीनों के बिल से बहुत अधिक था। 
ये जानने के लिए कि इतना ज़्यादा बिल क्यों आया, उन्होंने घर के सब लोगों को बुलाया।

पिता: यह तो हद हो गई। इतना ज़्यादा बिल? 
मैं तो घर का फ़ोन इस्तेमाल ही नहीं करता - सारी बातें ऑफ़िस के फ़ोन से करता हूँ।

माँ:  मैं भी हमेशा अपने ऑफ़िस का ही फ़ोन इस्तेमाल करती हूँ। 
सहेलियों के साथ इतनी सारी बातें घर के फ़ोन से करुँगी तो कैसे चलेगा?

बेटा:  पिता जी - आपको तो पता ही है कि मैं सुबह सात बजे घर से ऑफ़िस के लिए निकल जाता हूँ। 
मुझे जिस से बात करनी होती है - ऑफ़िस के फ़ोन से ही करता हूँ।

बेटी: मेरी कम्पनी ने मेरी डेस्क पर भी फ़ोन दिया हुआ है - मैं तो सारी कॉल्स उसी से करती हूँ। 

"फिर ये घर के फ़ोन का बिल इतना ज़्यादा कैसे आया ? पिता ने पूछा। 

घर की नौकरानी चुपचाप खड़ी सब की बातें सुन रही थी। 
सबकी प्रश्न भरी निगाहें अब उसी की ओर उठ गयीं ....

"क्या तुम हमारे घर का फ़ोन इस्तेमाल करती हो? 
उसने कहा - जी 
पिता जी की तेवर चढ़ गईं 
"हमारे फ़ोन से तुम्हें अपनी पर्सनल कॉलें करने का कोई हक़ नहीं है" 

वो बोली: “आप सब भी तो जहां पर काम करते है, वहीं  का फ़ोन इस्तेमाल करते हैं 
         मैंने भी वही किया तो क्या ग़लत किया ?”
 ~~~~      ~~~~      ~~~~       ~~~~       ~~~~      ~~~~

              जो हम स्वयं करते हैं, वो हमें बुरा नहीं लगता 
              लेकिन वही काम कोई और करे तो...... ?

बहुत बार - ये जानते हुए भी कि हम जो कर रहे हैं वो ठीक नहीं है - 
फिर भी हम अक़्सर वो काम करते रहते हैं।  
लेकिन वही काम अगर कोई और करे तो हमारी प्रतिक्रिया बदल जाती है।  

दूसरों के प्रति कुछ ग़लत करते हुए हम स्वयं को दोषी महसूस नहीं करते। 
अपनी त्रुटियाँ एवं कमज़ोरियां या तो हमें दिखाई ही नहीं देतीं 
और अगर दिखाई दें भी - तो हम उन्हें मामूली सी बात कह कर टाल देते हैं।  
लेकिन जो व्यवहार हम दूसरो के साथ करते हैं अगर वही व्यवहार कोई हमारे साथ करे 
तो हम उन पर भेदभाव का आरोप लगा कर और स्वयं को प्रताड़ित बता कर उनकी आलोचना एवं शिकायत करने लगते हैं। 

ज़रा सोचिए - 
यदि हम दूसरों के प्रति अपने व्यवहार के लिए अपने आप को दोषी महसूस नहीं करते तो अगर अन्य लोग भी हमारे साथ कुछ वैसा ही व्यवहार करते हैं तो हमें स्वयं को पीड़ित और प्रताड़ित सिद्ध करने का क्या अधिकार है ?
                                             " राजन सचदेव "

4 comments:

Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...