Tuesday, October 27, 2020

क्या मैं इक नदी हूँ?

क्या मैं इक नदी हूँ?

जो समंदर से मिलने के लिए बेचैन
सदियों से कल कल बह रही है

या फिर वो समंदर हूँ - कि
आदिकाल से जिसकी लहरें
साहिल पे सर पटक रही हैं

या वो झील हूँ -
जो अपने में सीमित
अपनी ही क़ैद में सूखती रही है
खाली हो हो कर फिर भरती रही है

या फिर मैं खुद का बनाया हुआ इक तालाब हूँ
जिस के ऊपर मेरे ही अहम की काई जम चुकी है
जिस के नीचे मेरा तन और मन
दिन ब दिन मैला - -
और मैला होता जा रहा है

मैं जानता हूँ कि इक दिन
मुझको फिर से नहलाया जायेगा
मेरे शरीर - मेरे अहम को जलाया जायेगा
मेरी राख को भी नदी में बहाया जायेगा

क्या तब ही मैं अपने समंदर से मिल पाउँगा ?

                         'डॉक्टर जगदीश सचदेव '
                                     मिशीगन

1 comment:

Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...