Tuesday, December 24, 2024

सैर बेशक कीजिए इस दुनिया के बाज़ार की

रेत पे इक घर बना लेना अक़्लमंदी नहीं
हसद में ख़ुद को जला लेना अक़्लमंदी नहीं   (ईर्ष्या की आग में) 

सैर बेशक कीजिए इस दुनिया के बाज़ार की 
लेकिन इस से दिल लगा लेना अक़्लमंदी नहीं 

एक दिन तो छोड़ के सब को चले जाना है पर
आज ही दूरी बना लेना - अक़्लमंदी नहीं

दूसरों को आसमानों पर चढ़ाने के लिए 
अपनी हसरत को मिटा लेना अक़्लमंदी नहीं 

और इक उड़ते परिंदे को पकड़ने के लिए 
हाथ में जो है गंवा लेना अक्लमंदी नहीं 

बाँटने से ज्ञान अपना कम नहीं होता कभी
इल्म को पाकर छुपा लेना अकलमंदी नहीं 

चार दिन की ज़िंदगी में ख़ामख़ाह ही दोस्तो
हर किसी की बद् दुआ लेना अक़्लमंदी नहीं 

माज़ी को तो हम बदल सकते नहीं 'राजन' मगर  
इस समय को भी गंवा लेना अक़्लमंदी नहीं
                        " राजन सचदेव " 
हसद     = ईर्ष्या 
माज़ी     = भूतकाल, बीता हुआ वक़्त

8 comments:

  1. So beautiful. 🙏🙏

    ReplyDelete
  2. Waaaah waaaah waaah bahuttt baddiyaa

    ReplyDelete
  3. Waah waah ji, mukkamal

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छा खयाल है.🙏🙏

    ReplyDelete
  5. Excellent.Absolutely true ji .Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Rachana ji.🙏

    ReplyDelete
  6. V v v v nice mahatma ji

    ReplyDelete
  7. Beautiful piece of wisdom 🙏🙏

    ReplyDelete

Life is simple, joyous, and peaceful

       Life is simple.  But our ego, constant comparison, and competition with others make it complicated and unnecessarily complex.        ...