Thursday, October 29, 2020

कठोपनिषद - नचिकेता और यमराज -भाग १

उपनिषद, प्राचीन भारत के दर्शन और अध्यात्म के महान शास्त्र हैं जो हमारे जीवन के विभिन्न व्यावहारिक पहलुओं पर अमिट छाप छोड़ते हैं
समय और स्थान की सीमाओं से परे- कथाओं और वार्तालाप के रुप में ये ऐसे अनुभव और दर्शन हैं जो गुरु और शिष्य अथवा ज्ञानियों एवं जिज्ञासुओं के बीच घटित हुए|

ऐसे ही महान एवं पवित्र शास्त्रों में से एक शास्त्र है कठ-उपनिषद - जिसे कठोपनिषद भी कहा जाता है।

ये कथा है एक नौ वर्षीय युवा बालक नचिकेता और धर्मराज के बीच हुए संवाद की।

इस कहानी का आरम्भ होता है एक लघु संवाद से जो नचिकेता और उसके पिता के बीच होता है - तत्पशचात, शेष उपनिषद नचिकेता और यमराज के बीच हुए संवाद पर आधारित है।

                  कठोपनिषद की कहानी इस प्रकार शुरु होती है:

नचिकेता के पिता, उशान वाजश्रवस (वाजश्रवस के सुपुत्र) - एक वैदिक अनुष्ठान विश्वजीत-यज्ञ कर रहे थे।
नचिकेता अपने मित्रों के साथ बाहर खेल रहे थे, जब उन्होंने प्रांगण में बैठी एक हजार गायों को देखा।
उत्सुकतावश, उसने अपने पिता के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा। 

पिता अपने सलाहकारों के साथ यज्ञ की क्रिया में व्यस्त होने के कारण नचिकेता को जवाब देना उचित नहीं समझते और उसे वहाँ से जाने के लिए कहते हैं।

लेकिन नचिकेता फिर भी आस पास घूमता रहा और उसे पता चला कि वो हज़ारों गाएँ वहाँ उपस्थित ब्राह्मणों और पुजारियों को दक्षिणा के रुप में दी जाने वाली थीं। नचिकेता ने उनको पास जाकर देखा और सोचा।
                            ' पीतोदका - जग्धतृणा - दुग्धदोहा - निरिन्द्रियः ' 
अर्थात इन गायों ने जितना पानी पीना था पी चुकीं हैं - जितनी घास खानी थी खा चुकीं, जितना दूध देना था दे चुकीं ।अब तो ये बाँझ हो चुकीं हैं और बछड़े जनने में भी असमर्थ हैं।
वो अपने पिता के पास वापिस गया और बोला :
पिताश्री - ये गाएँ तो इतनी दुर्बल और जर्जर हैं कि इनमे अब कोई शक्ति नहीं बची। 
ये ना तो स्वयं पानी पी सकती हैं ना ही खाना खा सकती हैं। ये इतनी बूढ़ी हो चुकी हैं कि दूध और बछड़े देने में भी असमर्थ हैं।
                         ' अनन्दा नाम ते लोकास्तान्स गच्छति ता ददत '
जो (ब्राह्मणों - पुजारियों एवं गरीबों को) ऐसी दक्षिणा या उपहार देता है - उसे आनन्दहीन संसार प्राप्त होता है।
अर्थात ऐसा दान करके आनंदमयी स्वर्ग प्राप्त करने की अच्छा करना बेकार है। 

पिता को अपने नौ वर्षीय बालक से मिला ये ज्ञान नहीं भाया और अपने पुत्र को दुत्कारते हुए कहा कि उनके पास जो कुछ है वह सब दान कर रहे हैं।

नचिकेता ने पूछा:   
                          ' स होवाच पितरं तत कस्मै मां दास्यतीति '
 पिताजी - यदि आप सब कुछ दान कर रहे हैं - तो आप मुझे दानरुप में किसको देंगे?
पिता ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। 
लेकिन नचिकेता बार बार अपने पिता के पास आकर अपने प्रश्न का उत्तर माँगने का हठ करने लगा। उसकी हठ के कारण पिता का क्रोध बढ़ने लगा।
                               ' द्वितीयं तृतीयं तं होवाच - मृत्यवे त्वां ददामीति '
दूसरी और तीसरी बार पूछे जाने पर पिता ने क्रोधित होते हुए कहा:
"मैं तुम्हें यमराज को दूँगा" 

                    - शेष अगली बार -
                                       ' राजन सचदेव '

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सुख मांगने से नहीं मिलता Happiness doesn't come by asking

सुख तो सुबह की तरह होता है  मांगने से नहीं --  जागने पर मिलता है     ~~~~~~~~~~~~~~~ Happiness is like the morning  It comes by awakening --...