Monday, April 28, 2025

जीवन-काल चक्र

जिन की उंगलियां पकड़ के चलना सीखे थे
हाथ उनके कांपते अब देख रहे हैं
अब वो चलते हैं तो पाँव लड़खड़ाते हैं 
लाठी पकड़ के उनको चलते देख रहे हैं 

वक़्त के साथ किस क़दर लाचार हो जाते हैं सब
उम्र जब ढल जाती है 
तो कितने बेबस और नाचार हो जाते हैं सब

इस हाल में उनको देख कर - 
दिल में ये ख़्याल आता है
कि कल हमारे साथ भी क्या ऐसा ही होगा? 
क्या हम भी इसी तरह बेबस और लाचार हो जाएंगे?             
कुछ पकड़ना चाहेंगे तो हाथ कांपेंगे 
और चलते वक़्त पाँव लड़खड़ाएँगे 
धुंधली पड़ जाएंगी पुरानी यादें 
बात बात पर झुनझुनाएँगे  
याद करने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर देना पड़ेगा                
और बोलने के लिए शब्द ढूंढ़ने पड़ जाएंगे 

शायद ये सब हमारे साथ भी होगा
क्योंकि यही जीवन का नियम है
बनना, संवरना, बढ़ना और विस्तृत होना
फिर एक दिन मिट जाना - समाप्त हो जाना 
यही प्रकृति का सिद्धांत है - यही क़ुदरत का नियम है
इसे न कोई बदल पाया है - न बदल पाएगा
इसे स्वीकार करके ही जीवन में आगे बढ़ना होगा 

हर पीढ़ी - पुरानी पीढ़ी के तजुर्बों को 
अनदेखा कर के नहीं -
बल्कि उनसे कुछ सीख कर 
उस बिंदु से आगे बढ़ने का प्रयास करती है 
क्योंकि ये सुविधा और गुण 
केवल इंसान को ही प्राप्त है 
इसी लिए केवल मानव जाति ही प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होती रही है 
और होती रहेगी

इसलिए बुज़ुर्गों का - 
यानी पुरानी पीढ़ी का उपहास उड़ाने की बजाए 
या केवल उनके प्रति कुछ संवेदना प्रकट कर देने की बजाए 
जब तक समय है - उनके पास बैठें 
उनसे - और उनके अनुभवों से कुछ सीखने का प्रयास करें 
फिर उनसे सीखे हुए अनुभव 
और अपने नए अनुभवों को 
अपनी अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का यत्न करें 
उन को बताने - और सिखाने का यत्न करें
ताकि 'राजन' - मानव जीवन का ये कालचक्र 
प्रगति के मार्ग पर 
अनिरुद्ध, अविराम और अविरल चलता रहे 
            " राजन सचदेव " 

3 comments:

  1. जीवन काल चक्र
    पड़ कर अहसास हुआ की वो जमाना खतम हो गया, अज्ञाकारी वाला
    बस रस्मी तोर पर रह गया है

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