Tuesday, December 27, 2022

सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता

सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता
परो ददातीति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमीति वृथाभिमानः
स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ॥
                         (अध्यात्मरामायण )
अर्थात सुख और दुःख का दाता कोई और नहीं है।
कोई दूसरा (हमें सुख और दुःख) देने वाला है - ऐसा समझना कुबुद्धि - मंदबुद्धि और अल्प-ज्ञान का सूचक है।

 'मैं ही सब का कर्ता हूँ ' यह मानना भी मिथ्याभिमान है । 
हमारा समस्त जीवन और संसार स्वकर्म - अपने कर्म के सूत्र में बँधा हुआ है । 

यही बात तुलसीकृत रामायण में भी कही गई है‒
                काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।
                निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥

                           (राम चरित मानस - अयोध्या काण्ड)
अर्थात सुख और दुःख का दाता कोई और नहीं है।
हे भाई - सब अपने अपने कर्मों के अनुसार ही सुख दुःख भोगते हैं।

यही बात गुरबाणी में भी कही गई है‒
              ददै दोस न देउ किसै दोस करमा आपणेया
              जो मैं कीआ सो मैं पाया दोस न दीजै अवर जना 
                                         (गुरबाणी पन्ना 433)

अर्थात् अपने सुख-दुःख के उत्तरदायी हम स्वयं ही हैं - कोई दूसरा नहीं । 
जो जैसा करता है वह वैसा ही भरता है। किसी दूसरे को जिम्मेदार ठहराना गलत है। 

              बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
              साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥
             सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताई।
              कालहिं कर्महिं ईश्वरहिं, मिथ्‍या दोष लगाइ॥ (
राम चरित मानस - उत्तरकाण्ड)

अर्थात बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। 
सब ग्रंथ कहते हैं कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है। 
यह (मनुष्य शरीर)  साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है।
इसे पाकर भी जिस ने परलोक न संवारा
वह हमेशा दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है। 
तथा अपना दोष न समझकर उल्टे काल पर, भाग्य पर या ईश्वर पर मिथ्या ही दोष लगाता रहता है॥

हम अक़्सर अपनी किसी बात - किसी घटना या अपने किसी काम के परिणाम की जिम्मेवारी नहीं लेना चाहते। 
ख़ास तौर पर अपने दुःख और कष्टों के लिए किसी और को जिम्मेवार और दोषी ठहरा कर हमें कुछ राहत और सांत्वना सी महसूस होती है।
लेकिन अगर हम अपने भाग्य एवं परिस्थितियों के लिए स्वयं को जिम्मेवार समझेंगे तो आगे के लिए हर काम को समझदारी से करने की कोशिश करेंगे। 
अगर हम ये अच्छी तरह से समझ लें कि हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं तो हम हमेशा अच्छे कर्म ही करने की कोशिश करेंगे।
वर्तमान के शुभ कर्मो के द्वारा पिछले कर्मों के दुष्परिणाम को भी बहुत हद तक बदला जा सकता है।
इसीलिए धर्म ग्रन्थ और संत महात्मा हमें सत्संग, भक्ति, नम्रता और सेवा भावना इत्यादि की प्रेरणा देते रहते हैं।
लेकिन अगर किसी का भला नहीं कर सकते तो कम-अज़-कम किसी का बुरा तो न करें।
वेद कहते हैं:
                           मा गृधः कस्यस्विद्धनम्  
                                                        (ईशोपनिषद )
अर्थात किसी का धन - किसी का हक़ छीनने की कभी कोशिश न करो।
                                      " राजन सचदेव "

5 comments:

  1. 𝓫𝓮𝓪𝓾𝓽𝓲𝓯𝓾𝓵 𝓳𝓲🙏💐

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  2. 💖 Beautiful explanation. It’s enlightening really.

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  3. ਦਦੈ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਊ ਕਿਸੈ ਦੋਸੁ ਕਰੰਮਾ ਆਪਣਿਆ ॥
    ਜੋ ਮੈ ਕੀਆ ਸੋ ਮੈ ਪਾਇਆ ਦੋਸੁ ਨ ਦੀਜੈ ਅਵਰ ਜਨਾ ॥੨੧॥ {ਪੰਨਾ 433}

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