सादगी, शर्म-ओ-हया कुछ भी नहीं
आशिक़ी उल्फ़त वफ़ा कुछ भी नहीं
है ज़माना किस लिए मुझसे ख़फ़ा
गो मेरी या 'रब ख़ता कुछ भी नहीं
चाहता तो था कि कह दूँ मैं भी कुछ
सोच के कुछ पर कहा कुछ भी नहीं
जाने क्या है पढ़ लिया है तुमने मगर
मैंने तो ऐसा लिखा कुछ भी नहीं
जब लिखा - सच ही लिखा है बारहा
मा'सिवा सच के लिखा कुछ भी नहीं
अक़्स तो सब को दिखाता है मगर
दिल में रखता आईना कुछ भी नहीं
वक़्त से पहले - मुक़द्दर से अधिक
लाख कोशिश की मिला कुछ भी नहीं
जो मिला वो बांटते ही रह गए
अपने हिस्से में बचा कुछ भी नहीं
दिन ख़िज़ां के भी गुज़र ही जाएंगे
एक सा तो रह सका कुछ भी नहीं
जो बना - इक दिन फ़ना हो जाएगा
जाविदां और ला-फ़ना कुछ भी नहीं
क्या जहां से साथ ले के जाएंगे
हर बशर ने ये कहा -कुछ भी नहीं
आसमानों से परे है रब तेरा
कूबकू मेरा ख़ुदा 'कुछ भी नहीं '
फ़र्क़ नज़रों का है 'राजन - दुनिया में
जा-बेजा, अच्छा बुरा कुछ भी नहीं
" राजन सचदेव "
गो = हालांकि , यद्यपि , अगरचे
बारहा = अक़्सर, बहुधा, बारम्बार
मा'सिवा = सिवाए , इसके बग़ैर
जाविदां = अमर , शाश्वत, अविनाशी, सदैव रहने वाला
सदा = आवाज़
बेजा = अनुचित, नामुनासिब, असंगत, वेतुका, असमय, फुजूल, बेकार, नाजायज़
जा-बेजा = उपयुक्त-अनुपयुक्त - ठीक -गलत - जायज़ -नाजायज़
कूबकू = सर्वव्यापक, हर जगह मौजूद
आसमानों से परे है रब तेरा
कूबकू मेरा ख़ुदा 'कुछ भी नहीं '
कुछ लोगों और धर्मों की मान्यता है कि रब, ख़ुदा या ईश्वर सात आसमानों के ऊपर जन्नत में - स्वर्ग में रहता है।
लेकिन कुछ भी नहीं समझे जाने वाला मेरा रब - मेरा ईश्वर सर्वव्यापी है हर जगह मौजूद है -भरपूर है - सबके साथ है।