नलिनीदलगत जलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशय चपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,लोक शोकहतं च समस्तम् ॥४॥
अन्वय:
नलिनी दल गत जलम अति तरलम् - तद्वद जीवितम् अतिशय चपलम्
विधि व्याधि अभिमान ग्रस्तम् - लोकं शोक हतं च समस्तम्
अर्थात-
जीवन कमल-पत्र पर जल की बूंदों के समान अल्प एवं अनिश्चित है - क्षणभंगुर है।
जान लो (याद रखो) कि समस्त विश्व - अर्थात हर प्राणी रोग - अभिमान और दु:ख में ग्रस्त है॥
सारा संसार अहंकार और किसी न किसी रोग, कष्ट और दुःख का शिकार है।
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यहां आदि शंकराचार्य - जीवन की अस्थिरता को समझाने के लिए, कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूंदों का एक उत्कृष्ट उदाहरण दे रहे हैं।
जल की बूँदें कमल के पत्ते पर होते हुए भी पत्ते से अलग होती हैं - उस पर चिपकती नहीं हैं।
यह इतनी अस्थिर होती हैं कि जरा से हवा के झोंके से भी फिसल कर गिर सकती हैं।
इसी तरह हमारा जीवन भी अस्थिर और अप्रत्याशित है।
जिस प्रकार हल्की सी हलचल या हवा के झोंके से कमल के पत्ते पर बैठी पानी की एक बूंद आसानी से नीचे गिर सकती है -
उसी तरह किसी बीमारी, स्ट्रोक, दिल के दौरे या किसी दुर्घटना के कारण जीवन भी अप्रत्याशित रुप में शरीर से विदा हो सकता है।
हम जीवन की स्थिरता पर भरोसा नहीं कर सकते।
इसे पकड़ कर नहीं रख सकते।
हम नहीं जानते कि अगले पल में क्या होने वाला है।
इसलिए, जो भी समय हमारे पास है - उसका उपयोग सही ढंग से करना चाहिए।
उसका यथायोग्य लाभ लेना चाहिए।
विधि व्याधि अभिमान ग्रस्तम् - लोकं शोक हतं च समस्तम्
अर्थात यह भी समझ लें कि सारा संसार ही अभिमान और रोग एवं दु:ख का शिकार है।
प्रकृति के इस नियम से कोई भी अछूता नहीं है।
जिसने भी जन्म लिया है वह उपरोक्त लक्षणों से ग्रस्त है।
शरीर हमेशा या अंत तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं रह सकता - जीवन हमेशा सुखी और आनंदमयी नहीं रहता।
मानसिक स्तर पर भी - हर व्यक्ति के मन में कुछ न कुछ अहंकार और उत्कृष्टता का भाव मौजूद होता है जिसकी वजह से अक्सर कुंठा एवं ईर्ष्या का भाव भी भी बना रहता है ।
हर इंसान किसी न किसी दुःख और चिंता से ग्रसित रहता है।
कोई भी व्यक्ति हर प्रकार से पूर्ण नहीं होता।
सभी गुरुओं, ऋषियों और संतों- महात्माओं की तरह, आदि शंकराचार्य भी हमें याद दिला रहे हैं कि यह संसार क्षणभंगुर है -- अर्थात जीवन अप्रत्याशित है।
पीड़ा, शोक और दुःख हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा है।
वह हमें जीवन की वास्तविकता का एहसास करवा के - अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करने और समय का सही उपयोग करने के लिए समझा रहे हैं।
जीवन में लक्ष्य स्पष्ट होने पर ही संतुष्टि संभव है।
जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो जाने पर ही मन में संतोष होना संभव है।
और जीवन के उद्देश्य को जानने और समझने और उसे अपने जीवन में उतारने का समय अभी और इसी वक़्त है।
अक़्सर हम अप्रिय या कठिन कार्यों को कुछ देर के लिए स्थगित कर देते हैं।
ऐसा सोच लेते हैं कि अभी तो बहुत समय पड़ा है - इस काम को फिर कभी कर लेंगे।
शंकराचार्य कहते हैं कि जीवन अतिशय-चपलम - अत्यंत अस्थिर और अप्रत्याशित है।
इसलिए, जो काम अभी करना चाहिए उसमे ढ़ील नहीं करनी चाहिए - उसे स्थगित नहीं करना चाहिए।
संत कबीर जी भी यही कहते हैं:
कल करे सो आज कर - आज करे सो अब
पल में प्रलय होगी बहुरि करेगा कब?
अर्थात:
जो कुछ भी करना चाहते हो वो आज ही और अभी कर लो
यदि अगले पल ही अंत आ जाए तो कैसे करेंगे?
इसलिए, यदि कुछ अच्छा और उद्देश्यपूर्ण काम करना चाहते हैं - तो उसे जल्दी ही कर लेना चाहिए - प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
" राजन सचदेव "
नलिनी = कमल
दल = पत्ते
जलम = पानी की बूंद
अति तरलम = अत्यंत अस्थिर
तद्वद = इसी प्रकार
जीवितम् = जीवन
अतिशय -चपलम् = अत्यंत अस्थिर
विधि = जानिए
व्याधि = रोग,
अभिमान = अहंकार
ग्रस्तम = डूबा हुआ
लोकम् = संसार
शोक हतम = दुःख से त्रस्त
समस्तम = सब
यह जीवन की सच्चाई होते हुए भी हम मनुष्य कहीं न कहीं सच्चाइयों को आंखों से ओझल करके या फिर आँखें बंद करके भ्रम में पड़ हिब्जते हैं जी। आप जी ने बहुत सही अर्थ किया है जी।
ReplyDeleteThanks Uncle Ji 🙏
ReplyDeleteBahut hee Uttam shikhsha .🙏
ReplyDeleteBeautiful 🙏🏿
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